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________________ श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ८.१२ * गतिनामकर्म से प्रारम्भ करके विहायोगति नामकर्म तक चौदह प्रकृतियों के पेटाविभाग होने से उनको 'पिण्डप्रकृति' कहने में आती है। उनके पीछे की परघात से प्रारम्भ कर उपघात् पर्यन्त की आठ प्रकृतियों के पेटा विभाग नहीं होने से उनको 'प्रत्येक प्रकृति' कहने में पाती है। उनके पीछे की दस प्रकृतियों को 'बस दशक' कहने में आता है। और उनके भी पीछे की यानी अन्त में रही हुई दस प्रकृतियों को 'स्थावर दशक' कहने में आती है। .. नामकर्म के भेदों की ४२, ६३, १०३ तथा ६७ ऐसे चार संख्या दृष्टिगोचर अर्थात् देखने में पाती है। नामकर्म के केवल मूल भेदों की गिनती करने में आए तो ४२ संख्या होती है। जो इस प्रस्तुत सूत्र में कहने में पाई है। नामकर्म के अवान्तर भेदों का विचार करने में आए तो ६३ आदि संख्या हो जाती है। ६३ को संख्या नीचे प्रमाणे है। * चौदह पिण्डप्रकृतियों के भेद * [१] गतिनामकर्म-जिसमें सांसारिक सुख-दुःख के अनुभव होते हैं। उसके चार भेद देव० मनुष्य० तिर्यच० और नरक । * जिस कर्म के उदय से नारक पर्याय प्राप्त हो, अर्थात् नरकगति का जीवन प्राप्त हो, वह नरकगतिनामकर्म है। * जिस कर्म के उदय से तियंचगति का जीवन प्राप्त हो, वह तियंचगतिनामकर्म है । * जिस कर्म के उदय से मनुष्यगति का जीवन प्राप्त हो, वह मनुष्यगतिनामकर्म है । * जिस कर्म के उदय से देवगति का जीवन प्राप्त हो, वह 'देवगतिनामकर्म है। [२] जातिनामकर्म-इन्द्रिय अनुभव विशेष से पांच प्रकार का है। अर्थात् –जाति के एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय, ये पांच भेद हैं । * जिस कर्म के उदय से जीव-प्रात्मा को एक इन्द्रिय (स्पर्शेन्द्रिय) की प्राप्ति हो, वह एकेन्द्रियजातिनामकर्म है। जैसे-पृथ्वोकाय, अप्काय, तेउ (अग्नि) काय, वायुकाय एवं वनस्पतिकाय । * जिस कर्म के उदय से जीव-प्रात्मा को दो इन्द्रिय (स्पर्शेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय) की प्राप्ति हो, वह बेइन्द्रियजातिनामकर्म है। जैसे- शंख, कवड्डय गंडुल इत्यादि । * जिस कर्म के उदय से जीव-आत्मा को तीन इन्द्रिय (स्पर्शेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय) की प्राप्ति हो, वह तेइन्द्रियजातिनामकर्म है । जैसे गोमी. मंकण ज, खटमल, बिच्छू इत्यादि । * जिस कर्म के उदय से जीव-प्रात्मा को चार इन्द्रिय (म्पर्शेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय घ्राणेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय) की प्राप्ति हो, वह चउरिन्द्रियजातिनामकम है। जैसे-मक्खी, मच्छर, डांस, भ्रमर, बरं, ततैया आदि।
SR No.022535
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2001
Total Pages268
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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