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८४ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ ७।३४ ७. माया का प्रभाव-दान देने में किसी भी तरह की अर्थात् किसी भी प्रकार की माया नहीं करे। सरल भावपूर्वक दान करे।
८. निदान का प्रभाव-दान के फलरूप में परलोक में स्वर्गादि के सुख की याचना अर्थात् मागणी नहीं करे।
सुख की अभिलाषा-इच्छा का प्रभाव तथा निदान का प्रभाव इन दोनों में भव-संसार सुख की अभिलाषा-इच्छा का अभाव होने से सामान्य से अर्थ समान है। विशेष से दोनों के अर्थ में अल्प फेरफार भी है संसार सुख की इच्छा के अभाव में वर्तमान जीवन में संसार के सुख की इच्छा नहीं रखे, यह भाव है; तथा निदान के प्रभाव में परलोक में संसार के सुख की इच्छा नहीं रखे, यह भाव है।
(४) पात्र-सम्यग्दर्शन इत्यादि गुणों से युक्त सर्वविरतिघर साधु और देशविरतिघर श्रावक प्रादि ।
जितने अंश में विधि आदि बराबर हो उतने अंश में दान से अधिक लाभ । तथा जितने अंश में विधि आदि में न्यूनता हो उतने अंश में कम लाभ होता है ।। ७-३४ ॥