SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७।३२ ] सप्तमोऽध्यायः [ ७६ (५) कालातिक्रम - दान के समय का उल्लंघन करना । अर्थात् — भिक्षाकाल के बाद, या भिक्षाकाल होने के पूर्व-पहिले साधुओं को निमन्त्रण करना, यह काला 'तक्रम प्रतिचार है । यह तिथि संविभाग व्रत के पाँच प्रतिचार जानना ।। ७-३१ ।। * संलेखनाव्रतस्यातिचाराः 5 मूलसूत्रम् जीवित-मरणाशंसा-मित्रानुराग-सुखानुबन्ध निदानकरणानि ॥ ७-३२ ।। * सुबोधिका टीका * मारणान्तिकसंलेखनायाः पञ्चातिचाराः भवन्ति । ऐश्वर्य भोगेच्छयाचार्य प्रभृतीनां सेवाभावया वा असमर्थपुत्राणां भरणपोषणचिन्तयाऽधिकजीवनेच्छा जीविताशंसा भवति । प्रतिकूलसा धनदुःखेन द्रारिद्रयेन वा रुग्णावस्था वा मरणेच्छा मरणाशंसातिचारः । स्नेहीजनानुरागेणयोऽतिचारो भवति सः मित्रानुरागातिचारः । एवमेव सुखस्यानुबन्धने सुखानुबन्धोऽतिचारः । निधान करणातिचारः एते मारणान्तिकसंलेखनाया पञ्चातिचार | : भवन्ति ।। ७-३२ ।। * सूत्रार्थ - जीविताशंसा, मरणाशंसा, मित्रानुराग, सुखानुबन्ध तथा निदानकररण ये पाँच संलेखनाव्रत के अतिचार हैं ।। ७-३२ ।। विवेचनामृत 5 मरण - प्रशंसा, (३) मित्र अनुराग, (४) सुख - अनुबंध, संलेखना व्रत के अतिचार हैं । इनका क्रमश: संक्षिप्त वर्णन (१) जीवित प्राशंसा, (२) तथा (५) निदान करण; ये पाँच नीचे प्रमाणे है - (१) जीवित प्राशंसा - प्राशंसा यानी इच्छा । जीवित- यानी जीना । जीने की इच्छा यह 'जीवित प्राशंसा' है । अर्थात् पूजा तथा सत्कारादि देखकर के जीने की अभिलाषा - इच्छा करनी । पूजा, सत्कार-सन्मान, तथा प्रशंसा इत्यादिक प्रति हो जाने से अब मैं विशेष जिन्दा रहूं अर्थात् जीव तो सारूं । इस प्रकार जीने की अभिलाषा - इच्छा रखनी । यह 'जीवित - श्राशंसा' नामक अतिचार है । (२) मरण-श्राशंसा - दुःखादि देखकर मरने की अभिलाषा करनी । अर्थात् - पूजा, सत्कार-सन्मान, कीत्ति, तथा वैयावच्च प्रमुख नहीं होने से कंटालके मैं शीघ्र-जल्दी मर जाऊँ तो प्रच्छा । इस तरह मृत्यु- मरण की अभिलाषा इच्छा रखनी । यह 'मरण-प्रशंसा' नामक प्रतिचार है ।
SR No.022535
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2001
Total Pages268
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy