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श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
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द्वादशम-प्रतिथिसंविभागवतस्यातिचाराः *
卐 मूलसूत्रम्सचित्तनिक्षेप-पिधान-परव्यपदेश-मात्सर्य-कालातिक्रमाः ॥७-३१॥
* सुबोधिका टीका * अतिथिसंविभागवतस्य पञ्चातिचाराः भवन्ति । अन्नादिवस्तु यद् दानयोग्यं पत्रोपरिपर्यवेशनं सचित्तनिक्षेपनामकोऽतिचारः । देयाहार्य सचित्तपत्रादिभिः पाच्छादनं सचित्तपिधावातिचारः । स्वयं दानेऽप्रवृत्ताय अन्यं दानायोपदेशः परव्यपदेशातिचारः । दातृभ्येश्चेष्टया मात्सर्यनामकोऽतिचारः । दानसमयोल्लंघनं कृत्वा दानं कालातिक्रमोऽतिचारः। पञ्चाणुव्रतानां सप्तशीलानाञ्चातिचाराणां वर्णनं पूर्णमत्र ॥ ७-३१ ॥
* सूत्रार्थ-देय वस्तु को सचित्त पदार्थ पर रखना, सचित्त से ढांकना, परव्यपदेश, अन्य दाता से ईर्ष्या-मात्सर्य और दान के समय का उल्लंघन-कालातिक्रम ये पाँच प्रतिथि संविभाग व्रत के अतिचार हैं ।। ७-३१ ।।
+ विवेचनामृत ॥ (१) सचित्त निक्षेप, (२) सचित्त पिधान, (३) परव्यपदेश, (४) मात्सर्य और (५) कालातिक्रम ये पांच अतिथिसंविभाग व्रत के अतिचार हैं। इनका क्रमशः संक्षिप्त वर्णन नीचे प्रमाणे है
(१) सचित्त निक्षेप-देने योग्य वस्तु को नहीं देने की बुद्धि से अयोग्य सचित्तादि चीजवस्तु मिलाकर देनी। अर्थात्-नहीं देने की बुद्धि से देने लायक वस्तु को सचित वस्तु में रख देनी, यह सचित्त निक्षेप अतिचारा है।
(२) सचित्त पिधानम्-पूर्वोक्त वस्तु को सचित्त से ढक देना। अर्थात्-नहीं देने की बुद्धि से देने लायक वस्तु पर सचित्त वस्तु ढक देनी, वह सचित्तपिधान अतिचार है।
(३) परव्यपदेश-पूर्वोक्त वस्तु को दूसरे की कह देना। अर्थात् -नहीं देने की बुद्धि से देने लायक वस्तु अपनी होते हुए भी अन्य-दूसरे की है ऐसा कहना, अथवा देने की बुद्धि से अन्यदूसरे की होते हुए भी यह वस्तु मेरी है इस तरह कहना; यह परव्यपदेश अतिचार है।
(४) मात्सर्य-दान देने वालों और दान लेने वालों के गुणों से ईर्ष्या करना। अर्थात्हृदय में गुस्से होकर के देना। सामान्य मानव सभी देता है, तो क्या मैं उससे कम-न्यून हैं ? यों ईर्ष्या से देना. यह मात्सर्य अतिचार है।