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श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ ५।२६
____ एकसंसारीजीवोऽपि सिद्धपर्यायं धारयति । अत एव सिद्धत्वेनोत्पादोऽस्य संसारभावतः व्ययः ज्ञेयः। सर्वमेवं जीवत्वेन ध्रौव्यं त्रितययुतं ज्ञेयमिति ।
उत्पाद-व्ययौ ध्रौव्यं चैतद् त्रितययुतं सतो लक्षणम्, अथवा युक्त समाहितं वा त्रिस्वभावं सत् । यदुत्पद्यते यद् व्ययेति यच्च ध्र वं तत् सतम् । अत्राशङ्कते इदं तु वाच्यं सत् तत् किं नित्यं वाऽनित्यम् ? ।। ५-२६ ॥
* सूत्रार्थ-सत् का लक्षण उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य है। अर्थात्-जो उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य से युक्त हो वह 'सत्' कहा जाता है ।। ५-२६ ।।
विवेचनामृत उत्पाद (उत्पत्ति), व्यय (विनाश) और ध्रौव्य (स्थिरता) युक्त अर्थात् वस्तु-पदार्थ का तदात्मकत्व भाव 'सत्' कहलाता है। उक्त ये तीन जिसमें न हों, वह वस्तु 'असत्' है। अर्थात् इस विश्व-जगत् में विद्यमान नहीं है।
वस्तू-पदार्थ मात्र में सदा उत्पादादि ये तीनों अवश्य ही होते हैं। प्रत्येक वस्तु प्रतिसमय पर्याय रूप में उत्पन्न होती है और पर्याय रूप में ही विनाश पाती है; तथा द्रव्य रूप में स्थिर भी रहती है।
प्रत्येक वस्तु में दो अंश होते ही हैं--(१) द्रव्यांश और (२) पर्यायांश । उसमें द्रव्य रूप अंश स्थिर (ध्रुव) होता है तथा पर्याय रूप अंश अस्थिर (उत्पाद-व्ययशील) होता है। प्रत्येक वस्तु उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य युक्त होती है। यही कथन श्रीजैनदर्शन-जैनमत के सिद्धान्त-शास्त्र के अनुसार वास्तविक निःशङ्कपने अवश्य ही सिद्ध होता है। .
___ सत् स्वरूप के विषय में अन्य दर्शनकारों की मान्यता भिन्न-भिन्न प्रकार की है। उनके मत में सत् का लक्षण क्या है ? यह विचारना अति जरूरी है ।
(१) वेदान्त दर्शन वाले वेदान्ती सम्पूर्ण विश्व-जगत् को ब्रह्मस्वरूप ही मानते हैं। चाहे चेतन हो कि जड हो-समस्त वस्तुएँ ब्रह्म के ही अंश हैं। जैसे—एक ही चित्र में भिन्न-भिन्न रंग और भिन्न-भिन्न आकार-आकृतियां होती हैं, परन्तु वे सभी एक ही चित्र के विभाग हैं। चित्र से कोई जुदे नहीं हैं, वैसे ही यह समस्त विश्व-जगत् ब्रह्म स्वरूप है। तथा ब्रह्म ध्रुव-नित्य है। इसलिए वेदान्त, प्रौपनिषद्, शंकरमतावलम्बी सम्पूर्ण सत् पदार्थ (ब्रह्म) को ही केवल ध्रुव (नित्य) मानते हैं।
किन्तु एकान्त ही सर्वथा ध्रुव मानने से तथा ध्रौव्य रूप एक स्वभाव होने से जीव-आत्मा की अवस्थाओं का भेद युक्तियुक्त नहीं होगा अर्थात् प्रयुक्त होगा तथा जब जीव-यात्मा की अवस्था सदाकाल एक ही रही तो फिर संसार और मोक्ष के भेद का भी प्रभाव होगा। इतना ही नहीं किन्तु यम (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह) और नियम (तप, संतोष, स्वाध्याय एवं ईश्वरप्रणिधान) इत्यादि अनेक यत्न-प्रयत्न किये जाते हैं, वे सभी निष्फल हो जायेंगे।