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पञ्चमोऽध्यायः
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यदि संसार अवस्था और मोक्ष अवस्था के भेद को केवल कल्पना मात्र मानते हो तो जीवआत्मा का संसारी स्वभाव नहीं होने से उसकी उपलब्धि का अर्थात् प्राप्ति के अभाव का प्रसंग उपस्थित होगा । एवं यदि जीव- श्रात्मा का मनुष्यत्व और देवत्वादि संसारी पर्याय मानते हैं, तो एकान्त व्य का अभाव ही हो जायेगा इत्यादि ।
(२) बौद्धदर्शन वाले - सत् पदार्थ को निरन्वय ( संतति विना ) क्षणिक मानते हैं । चेतन वा जड़, वस्तु मात्र को वे क्षणिक यानी क्षण-क्षणे सर्वथा नाश-विनाश होने वाली मानते हैं । उनके मत में सत् का लक्षण क्षणिकता है । " यत् सत् तत् क्षणिकम्” अर्थात् - जो जो सत् हैं वे सर्व क्षणिक हैं । अर्थात् — केवल उत्पाद व्ययशील ही मानते हैं ।
(३) सांख्यदर्शन वाले तथा योगदर्शन वाले - विश्व - जगत् को पुरुष और प्रकृति स्वरूप मानते हैं। पुरुष यानी श्रात्मा । प्रकृति के संयोग से पुरुष का संसार है । दृश्यमान जड़ वस्तुनों ( परंपरा से ) प्रकृति का परिणाम है । इस दर्शन के मत में पुरुष ध्रुव कूटस्थ नित्य है जबकि प्रकृति परिणामी नित्य = नित्यानित्य है ।
सारांश यह है कि - सांख्य मत वाले चैतन्य तत्त्वरूप सत् को केवल ध्रुव ( कूटस्थ नित्य ) मानते हैं ।
(४) न्यायदर्शन वाले तथा वैशेषिकदर्शन वाले - अनेक सत् पदार्थों में से परमाणु, काल तथा जीवात्मादि कई सत् पदार्थों को ध्रौव्य ( कूटस्थ नित्य ) मानते हैं और घट, वस्त्रादिक पदार्थों को केवल नित्य ( उत्पाद व्ययशील ) ही मानते हैं ।
इस सम्बन्ध में श्रीजैनदर्शन का सत् स्वरूप विषयक मन्तव्य भिन्न ही है । उसी की प्रस्तुत ' में व्याख्या करते हुए कहा है कि
सूत्र
जो सत् वस्तु है, वह केवल कूटस्थ नित्य नहीं है और न ही निरन्वय विनाशी ही है । एक भाग कूटस्थ नित्य और एक भाग परिणामी नित्य है । या कोई भाग केवल नित्य और कोई भाग अनित्य भी नहीं हो सकता । सर्वज्ञ विभु श्री तीर्थंकर भगवन्त भाषित श्री जैनदर्शन का मन्तव्य यह है कि प्रत्येक वस्तु चाहे चेतन हो या जड़ हो, मूर्त्त हो या अमूर्त हो, सूक्ष्म हो या बादर हो; समस्त उत्पाद व्यय और ध्रौव्य इन त्रिपदीरूप हैं ।
प्रत्येक वस्तु अनन्त पर्यायात्मक है, तो भी उनमें से नित्य और अनित्य दो पर्याय मुख्यपने सभी में पाई जाती हैं। सारे विश्व में ऐसी कोई वस्तु नहीं है कि जिसमें उक्त दोनों पर्याय नहीं हो । अर्थात् - प्रत्येक वस्तु का एक अंश ऐसा है जो तीनों कालों में शाश्वतरूप से अवस्थित है और अन्य दूसरा अंश प्रशाश्वत रूप है । जो जगत् में शाश्वत है वह ध्रौव्यात्मक ( स्थिर ) है और स्थिर अंश से वस्तु पदार्थ उत्पाद तथा व्ययात्मक है । जैसे—घट पर्याय व्यय, कपाल पर्याय का उत्पाद, यह वस्तु-पदार्थ का अनित्य स्वभाव है एवं मृत्तिका रूप से वस्तु ध्रुव है । विश्व की प्रत्येक वस्तु में उत्पाद, व्यय समकाल होता है । जैसे- किसी व्यक्ति ने कहा कि तराजू की डंडी जिस समय एक ओर नीची होती है उसी समय दूसरी ओर ऊँची होती है, किन्तु एक अंश पर दृष्टिपात होने से वस्तु पदार्थ केवल ध्रौव्य अथवा अध्रौव्य ही जान पड़ते हैं । वास्तविकपने उपादान