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________________ ५॥१३ ] पञ्चमोऽध्यायः अलोकाकाश का अन्य द्रव्यों को अवगाह-जगह देने का स्वभाव होते हुए भी वहाँ धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय नहीं होने से जीव और पुद्गल गति-स्थिति नहीं कर सकते हैं। आकाश का कोई आधार नहीं। वह तो स्वप्रतिष्ठित है । * विशेष यह है कि-इस विश्व-संसार में पाँच द्रव्य अस्तिकाय रूप हैं। इनमें आधारआधेयभाव किस प्रकार है ? क्या इनके आधार के लिए इनसे कोई भिन्न द्रव्य है ? या इन पाँचों में ही कोई एक द्रव्य आधार रूप है ? इस प्रकार के उत्तर के लिए ही प्रस्तुत सूत्र है। स्थिति करने वाले द्रव्यों को आधेय कहते हैं और वे जिसमें स्थित हों वह आधार है। उक्त पाँच द्रव्यों में आकाश आधार रूप है तथा शेष चार द्रव्य प्राधेय हैं। यह प्रत्युत्तर केवल व्यवहार दृष्टि से है, निश्चयदृष्टि से नहीं। निश्चयदृष्टि से तो समस्त द्रव्य स्वप्रतिष्ठित ही हैं। अर्थात् अपने-अपने स्वरूप में स्थित हैं, कोई किसी में नहीं रहता है। * प्रश्न-व्यवहार दृष्टि से धर्मास्तिकायादि चार द्रव्यों का आधार आकाश माना जाता है तो आकाश का आधार क्या है ? उत्तर-आकाश को किसी द्रव्य का आधार नहीं है, क्योंकि इससे विस्तीर्ण अथवा इसके बराबर परिमाणवाला कोई पदार्थ नहीं है। इसलिए व्यवहार और निश्चय दृष्टि से प्राकाश स्वप्रतिष्ठित ही है। अन्य धर्मास्तिकायादिक द्रव्य इससे न्यून परिमाण वाले हैं। आकाश के एक देश-तुल्य समान है। इस हेतु से आधाराधेय "अवगाहावगाही" भाव माना गया है। आकाश सबसे बड़ा द्रव्य है ।। ५-१२ ।। * धर्मास्तिकायादीनां स्थितिक्षेत्रस्य मर्यादा * 卐 मूलसूत्रम् धर्माधर्मयोः कृत्स्ने ॥ ५-१३ ॥ -- * सुबोधिका टीका * अवगाहः द्वाभ्यां प्रकाराभ्यां सम्भवति । प्रथमस्तु जनस्य मनसः इव द्वितीयस्तु नीरक्षीरवत् । धर्माधर्मयोः कृत्स्ने लोकाकाशेऽवगाहः भवति। नीरक्षीरावगाहः प्रकृताभीष्टः, कृत्स्नेनेति विवक्षितम् । तथा च यथा प्रात्मनः शरीरे व्याप्तिः तथैव धर्माधर्मयोः अनादिकालेन व्याप्तिः । तद् कोऽपि लोकस्य प्रदेशः यत्र धर्माधर्मद्रव्ययोरभावः ।। ५-१३ ॥
SR No.022534
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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