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________________ ५ सद्गुरुभ्यो नमो नमः ॐ धर्मप्रभावक-संयमसम्राट-शास्त्रविशारद-व्याकरणरत्न कविदिवाकर-परमपूज्य-प्राचार्यगुरुदेव * श्रीमद्विजयदक्षसूरीश्वर-स्तुत्यष्टक * [हरिगीत-छन्द] भारतदेश-गुजरात ख्यात प्रान्त महेसाणा महीं, पाया जन्म चतुर पिता-माता जास चंचल सही । धरी नाम दलपत अभ्यास किया चाणस्मा में रही , ऐसे गुरु श्रीदक्षसूरि को वन्दना हो हमारी ॥ १ ॥ जिसने प्रात्मसाधन शुद्धकरणे नित्य उद्यम जो किया , बाल्यवय में गृहत्यागी बने मोह ममता को हरा । परदेश में भी हिम्मत धरी विविध वेश में फर्या , ऐसे गुरु श्रीदक्षसूरि को वन्दना हो हमारी ।। २ ।। दीक्षा पाने के लिए कष्ट प्रति जिसने सहे , निज पिता के प्रवरोध को भी स्नेह से दूरे किये। पंन्यास अमृतगरिण हस्ते करेड़ा तीर्थे दीक्षा ग्रही , ऐसे गुरु श्रीदक्षसूरि को वन्दना हो हमारी ।। ३ ॥ प्रवर्तक श्रीलावण्य गुरु के शिष्य दक्ष नामी हुए , अध्ययन किया श्रुत-सिन्धु का निजात्म प्रज्ञा बले । हुए दक्ष न्याय - व्याकृति - साहित्यागमादि महीं, ऐसे गुरु श्रीदक्षसूरि को वन्दना हो हमारी ॥ ४ ॥ पाये पदवी गणि-पन्यास-वाचक-प्राचार्यपद की , शास्त्रविशारद-कविदिवाकर और व्याकरणरत्न की। ज्ञान-ध्यान-संयमाराधना की विविध तप-त्याग से , ऐसे गुरु श्रीदक्षसूरि को वन्दना हो हमारी ।। ५ ॥
SR No.022534
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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