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________________ ε४] [ अष्टक - समुच्चय जिनकी निश्रा में प्रतिष्ठा उपधान उजमरणादि हुए, तथा तीर्थसंघ - दीक्षादि कार्य अनेक रम्य हुए । गरिण-पंन्यास-वाचक-प्राचार्य पदवियाँ उत्तम हुईं, ऐसे गुरु श्रीवक्षसूरि को वन्दना हो हमारी ॥ ६ ॥ ग्रन्थ संगीत - सरितादिके, रचे जिसने व्याकरण किये पद्यानुवाद जीव - विचार - नवतत्त्वादि के । कर्मग्रन्थ के भी किये रची स्तवन- स्तुति चौबीसी, ऐसे गुरु श्रीदक्षसूरि को वन्दना हो हमारी ॥ ७ ॥। विश्व पर उपकार करते भव्य जीवो उद्धरे, धर्म प्रभावक होते ही संयमसम्राट् भी बने । पाये समाधि अन्तिम वह संचरे स्वर्ग-महीं, ऐसे गुरु श्रीदक्षसूरि को वन्दना हो हमारी ॥ ८ ॥ मिसूरीश - शासन सम्राट् के, तपगच्छ स्वामी पट्टालंकार लावण्यसूरि - साहित्यसम्राट् के । पट्टधर श्रीदक्षसूरि के शिष्य सुशीलसूरि ने रचा गुरु अष्टक यही वाचक विनोद विनंति से ।। ६ ।। ॥ इति श्रीमद् विजयदक्ष सूरीश्वर स्तुत्यष्टक समाप्त ॥ 筑
SR No.022534
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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