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________________ ६२ ] [ अष्टक-समुच्चय सौराष्ट्रे श्रीमरुधर अने मेदपाट प्रदेशे , देशोदेशे सतत विचरी गुजरात प्रदेशे । सारां सारां अनुपम घणां धर्मना कार्य कीधां , सौए जेनां वचन कुसुमो शीघ्र जीली ज लीधां ॥ ६ ॥ जेना यत्ने थइ सफलता साधु संमेलने जे , जेथी लाध्यो सुयश विमलो विश्वमां प्रात्मतेजे। प्राचार्यादि प्रवर पदथी भूषिता कैक कीधा , रंगे जेणे जगतभरने योग ने क्षेम दीधां ।। ७ ।। दीवालीनी विमल कुखने जेह दीपावनारा , लक्ष्मीचन्द्र-प्रवर कुल ने नित्य शोभावनारा । सौराष्ट्र श्री मधुपुर तणी कीत्ति विस्तारनारा , वन्दु छु ते विमलगुणना धामने प्रापनारा ।। ८ ।। [हरिगीत-छन्दमां] तपगच्छनायक जगगुरु श्रीनेमिसूरीश्वर तणा , पट्टगगने भानु सम श्री लावण्यसूरीवर तणा । शिष्य दक्ष मुनीश केरा सुशील शिष्ये ए रच्यु, निज शिष्य श्रीविनोदनी विनति थकी जे उर जच्यं ।। ॥ इति श्रीशासनसम्राट्-स्तुत्यष्टक समाप्त ॥
SR No.022534
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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