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साहित्यसम्राट्-प्रगुरुदेव ॥ प्रार्थना श्रद्धाञ्जलि अष्टक m Laxmmsmmmmmmmmmwimmmmsammmmmm
_ [ललित-छन्दमां]
[अरर हे प्रभो ! अर्ज हुं करु....ए रागमां] अरर हे गुरो ! शुकयु तमे, क्षण महीं तजी कयां गया तमे । सुगुरुदेव ए स्वर्गमां गया, अमर कीत्ति ने राखता गया ।। १ ।। विरह आपनो सर्वने थतां, सहु जनो रडे प्रापना जतां । स्वपरिवार ने शीर्षछत्रना, विरह दुःखनी घोर वेदना ॥ २ ।। शरण आपनु लाभकारक, चरण शुद्धि ने ज्ञानवर्धक । परम योग ने क्षेमदायक, पुनीत पन्थमां ए सुरक्षक ।। ३ ।। सहु हता अमे नाथ युक्त ए, प्रम थया हवे नाथ शून्य ए। स्मरण प्रापनु सर्वदा रहो, विमल दर्शन स्वप्नमां जहो ।। ४ ।। तुम तणी अमे भक्ति ना करी, कथित धर्मनी सीख ना धरी। अम सवी गुनाह माफ ए करो, अम परे कृपादृष्टि ने धरो॥ ५ ॥ गुण निधान ने ज्ञानसिन्धु ए, श्रमण सन्त ने सूरि राज ए। चरणपात्र ने शीलवन्त ए, परमपूज्य ने शान्तमूत्ति ए ।। ६ ।। विविध शास्त्रना सर्जनार ए, मधुर देशना आपनार ए। जग जनोपकारी महान् ए, प्रगुरुदेव लावण्यसूरि ए ।। ७ ।। नमन हो गुरो ! आपने सदा, न अमने तमे भूलशो कदा । सुगुरु आशिष स्वर्गथी सदा, अम समस्त ने प्रापजो मुदा ।। ८ ।।
[शार्दूलविक्रीड़ित-छन्दमां] प्राजे सर्वमली अमे सहु जनो ए प्रार्थना ए करी ,
पूज्य श्रीगुरुदेव प्राज तुमने चित्ते उमंगे स्मरी। सुश्रद्धांजलि एज अर्पण करी प्राजे अमे भाव थी ,
तेने हे गुरुदेव ! आप हृदये स्वीकारजो स्नेहथी ॥ ६ ।।
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