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________________ १० असार संसार की सज्झाय ! यह संसार अनादि से है, अनन्तकाल तक रहेगा। - नहीं उसकी प्रादि मिलती है, नहीं कभी अन्त मिलेगा ॥ १ ॥ यह संसार कर्मशाला है, भोग कर्म तू जायेगा। लख चौरासी जीवा योनि में, भ्रमण करता रहेगा ।। २ ॥ इस जगत् का राग रंग सभी, यहीं पड़ा रह जायेगा। धन-दौलत और दुनिया सारी, नहीं साथ कोई पायेगा ॥ ३ ॥ पत्नी पुत्र और बन्धु मित्रादि, साथ कोई नहीं जायेगा। जन्मे जब तुम आये अकेला, और अकेला ही जायेगा ।। ४ ।। स्वार्थ के हैं इस विश्व में बन्धु, नहीं सार कोई पायेगा। इसे कहा ये संसार प्रसार है, शास्त्रज्ञानी ऐसा कहेगा ॥ ५॥ हे जीव ! तू मनुष्य भव पाये हो, सफल कब ही करेगा। संयम पाकर कर्म दूर कर, मोक्षसुख कब पायेगा ।। ६ ।। नाहीं भरोसा इस देहका ए, प्रात्मा कब चला जायेगा। मन की भावना मन में रहेगी, पीछे पश्चाताप रहेगा ।। ७ ।। श्री सुशीलसूरि नित्य कहत है, भव्यात्मा ही पावेगा। सादि अनंत स्थिति मोक्ष में, शाश्वत सुख में म्हालेगा ।। ८ ।।
SR No.022534
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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