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गुरु- प्रार्थना प्रष्टक
( ललित - छन्दमां )
[ अरर हे प्रभो ! अर्ज हुं करु - ए रागमां ]
सुगुरुराज छो विश्वमां तमे, विबुधनाथ छो ज्ञानमां तमे, शशि समा तमे शीतवंत छो, जलधि जीम गंभीर छो तमे, कनक मेरुनिष्कम्प धीर छो, तप ने दया मूर्ति छो तमे, नित छ कायना रक्षनार छो, समिति गुप्तिना पालनार छो । सकल कार्यमा दक्ष छो तमे, प्रणयथी नमीये सदा श्रमे ॥ ४॥
गुणनिधान छो प्रणयथी नमी रवि समा तथा तेजवंत छो । प्ररणयथी नमीये सदा श्रमे ।। २॥ शमदमादि ने त्यागवीर छो । प्रणयथी नमीये सदा श्रमे ।। ३ ।।
सर्वमां तमे । सदा श्रमे ।। १ ।।
मुगति मार्गना दाखनार छो । प्रणयथी नमी सदा प्रमे ।। ५ ।। विमल नारणथी प्रणयथी नमीये सदा प्रमे ॥ ६ ॥
दीपता तमे ।
भव अरण्यमां सार्थवाह छो, जग परोपकारी महातमे, दरशने करी निर्मला तमे, चरण रत्नथी शोभता तमे, मुगुट छो प्रमारा ज शीर्षना, विमलहार छो एज चित्तना । नयनना ज तारा तथा तमे, प्रणयथी नमीये मुज सुप्रात्मनो सत्य नाविक, परम योग ने सुजिन धर्मना संत छो तमे, प्रणयथी नमीये [हरिगीत - छन्दमां ]
तपगच्छस्वामी गुणधामी नेमिसूरि महाराजना
सदा श्रमे ।। ७ ।।
क्षेम अर्पक ।
सदा श्रमे ।। ८ ।।
पट्टाका सूर्य सरीखा
लावण्यसूरिराजना ।
शिष्य पंन्यासदक्षना पंन्यास सुशील साधु ए, 'गुरुप्रार्थना श्रष्टक' रच्युं वर्द्धमान शिष्य काज ए ॥ ६ ॥
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