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५८ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्र
[ हिन्दी पद्यानुवाद * हिन्दी पद्यानुवाद
दर्शनविशुद्धि विनय और, निरतिचारी शीलधरा। ज्ञानोपयोग संवेग शक्ति, त्याग तप धरता नरा। संघ तथा साधुसमाधि, नहीं वैयावच्च त्यजता । अरिहंतसूरि बहुश्रुतों की, भक्ति प्रवचन करता ॥ १५ ।। अवश्य करणी षट्प्रकारी, निरन्तर धरता जना। मोक्षमार्ग प्रकाश भावे, आदर अति शासन का ।। जिननाम कर्म उत्तम धर्म, पुण्य की उत्कृष्टता । जीव बाँधे उदय आये, पद तीर्थंकर साधता ॥ १६ ॥
* गोत्र और अन्तराय कर्मप्रकृति के प्रास्रव के
ॐ मूलसूत्रम्
परात्मनिन्दाप्रशंसे सदसद्गुणाच्छादनोद्भावने च नीचर्गोत्रस्य ॥ २४ ॥ तद्विपर्ययो नीचर्वत्यनुत्सेको चोत्तरस्य ॥ २५ ॥
विघ्नकरणमन्तरायस्य ॥ २६ ॥ * हिन्दी पद्यानुवाद
परकी निन्दा आत्मश्लाघा, परसद्गुण को ढांकते । गुण नहीं हैं, मुझ महीं, ऐसे वह नित्य प्रकाशते । नीच गोत्र बन्धे अशुभ भावे, जीव बहुविध जात के । वह बन्धन तुम छोड़ने को, यत्न करना विशेष से ।। १७ ।। इससे विपरीत भावे, नम्रता घरता सदा। अभिमान तजतां गोत्र बन्धे, उच्च के भवि जीव सदा ।। दान लाभ ही भोगोपभोगे, वीर्यगुण की विघ्नता । करतां थकां अन्तराय बन्धे, सुनो मन कर एकता ।। १८ ।।
तत्त्वार्थाधिगमे सूत्रे, हिन्दीपद्यानुवादके ।
पूर्णः षष्ठोऽयमध्याय, प्रास्रवतत्त्वबोधकः ॥ ६ ॥ ॥ इति श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्र के षष्ठाध्याय का हिन्दी पद्यानुवाद पूर्ण हुआ ॥