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________________ श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ६ २६ (३) सद्गुणाच्छादन - स्वोत्कर्ष से बचने के लिए अपने विद्यमान गुणों को ढकना । (४) सद्गुणोद्भावन - अपने दुर्गुणों को प्रगट करना । यहाँ स्वनिन्दा और असद्गुणोद्भावन का अर्थ समान होते हुए भी अपनी लघुता बताने के लिए विद्यमान वा श्रविद्यमान अपने दोषों को प्रगट करना, ऐसा अर्थ जब करने में आ जाय तब और असद्गुणोद्भावन से विद्यमान दुर्गुणों को प्रगट करना ऐसा अर्थ करने में आ जाय तो दोनों के अर्थ में कंइक फेर पड़ जाय । अथवा आत्मनिंदा अर्थात् अपने में केवल दोष जोना- देखना, प्रगट नहीं करना तथा सद्गुणोद्भावन अर्थात् अपने दुर्गुणों-दोषों को बाहर प्रगट करना । ऐसा अर्थ करने में प्राये तो इन दोनों के अर्थ में भेद पड़ता है । अथवा पर के गुणों का प्रकाशन यह 'सद्गुणोद्भावन' है तथा पर के दोषों को ढांकना यह 'प्रसद्गुणाच्छादन' है । ४८ इस अर्थ में परप्रशंसा तथा सद्गुण उद्भावन का अर्थ समान है। इससे विपरीत अर्थ करने में आ जाय तो स्वनिन्दा प्रादि चारों के अर्थ में भिन्नता होगी । (५) नम्रवृत्ति - गुणी पुरुषों के प्रति नम्रता तथा विनयपूर्वक वर्त्तना, वह नम्रवृत्ति है । (६) अनुत्सेक - विशिष्ट श्रुत आदि की प्राप्ति होते हुए भी गर्व अभिमान नहीं करना, यह सेक है । * तदुपरान्त - जाति आदि का मदश्रभिमान नहीं करना, पर की अवज्ञा नहीं करनी, मसखरी नहीं करनी, तथा घर्मीजीवों की प्रशंसा करनी, इत्यादि भी उच्चगोत्र कर्म के प्रास्रव हैं ।। (६-२५) 15 मूलसूत्रम् - * अन्तरायकर्मरणः श्रास्रवाः विघ्नकररणमन्तरायस्य ॥ ६-२६ ॥ * सुबोधिका टीका * पञ्चविधोऽन्तरायकर्म । दानान्तरायं, लाभान्तरायं, भोगान्तरायं, उपभोगान्तरायं वीर्यान्तरायञ्च । दानलाभभोगोपभोगवीर्येषु यस्य कर्मरण: उदयेन साफल्यं नैव भवति अन्तरायं तच्च । दानादीनां विघ्नकरणमन्तरायस्यास्रवो भवति इति । १. जैसे स्वोत्कर्षं से बचने के लिए विद्यमान भी अपने गुणों को छिपाना यह दोष रूप नहीं है, किन्तु गुणरूप है; वैसे अपनी लघुता दिखाने के लिए अपने में अविद्यमान दोषों को भी कहना वह दोष रूप नहीं है, किन्तु गुणरूप है।
SR No.022534
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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