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६१० ] षष्ठोऽध्यायः
[ २३ 卐 विवेचनामृत है निर्वर्तना, निक्षप, संयोग और निसर्ग ये चार प्रकार के अजीवाधिकरण हैं। इनके अनुक्रम से दो, चार, दो और तीन भेद हैं। परमाणु इत्यादि मूत्तिमान वस्तु द्रव्य अजीव अधिकरण है तथा जीव की शुभाशुभ प्रवृत्ति में उपयोगित मूर्तद्रव्य जिस अवस्था में वर्तमान हो, उसे भाव अजीव अधिकरण कहते हैं ।
प्रस्तुत सूत्र में जो अजीव अधिकरण के मुख्य निर्वर्तनादि चार भेद बताये हैं, वे भाव अजीव अधिकरण के जानने चाहिए।
निर्वर्तनादि चार भेदों का स्वरूप क्रमशः नीचे प्रमाणे है
(१) निर्वर्तना-रचना विशेष को कहते हैं। इसके मूलगुण निर्वर्तना और उत्तरगुण निर्वर्तना रूप दो भेद हैं। मूलगुणनिर्वर्तना अधिकरण के पाँच प्रकार हैं। पुद्गल द्रव्य की औदारिक आदिदेह-शरीर रूप रचना तथा जीव-प्रात्मा की शुभाशुभ प्रवृत्तियों में अन्तरंग साधनपने उपयोगी होने वाले मन, वचन और प्राण तथा अपान हैं ।
उत्तरगुणनिर्वर्तना अधिकरण में काष्ठ, पुस्त तथा चित्रकर्मादिक जो रचना बहिरंग साधनपने जीव-आत्मा की शुभाशुभप्रवृत्ति में उपयोगी होती है।
* यहाँ पर मूल का अर्थ मुख्य अथवा अभ्यन्तर है, तथा उत्तर का अर्थ अमुख्य अथवा बाह्य है। हिंसा इत्यादि क्रिया करने में देह-शरीर आदि मुख्य-अभ्यन्तर साधन हैं तथा तलवार
आदि गौरण-बाह्य साधन हैं। मूलगुण की तथा उत्तरगुण की रचना में हिंसा इत्यादि होने से यह रचना स्वयं अधिकरण रूप है, एवं अन्य अधिकरण में कारण रूप बनती है।
(२) निक्षेप-यानी स्थापित करना। इसके मुख्य चार भेद हैं१. अप्रत्यवेक्षित, २. दुष्प्रमाजित, ३. सहसा और ४. अनाभोग ।
(१) अप्रत्यवेक्षित निक्षेप-भूमि का अन्वेषण किये बिना अर्थात् भूमि को दृष्टि से देखे बिना किसी चीज-वस्तु को कहीं स्थापित करना। वह 'अप्रत्यवेक्षित निक्षेपाधिकरण' है ।
(२) दुष्प्रमाजित निक्षेप-भूमि को देख करके भी चीज-वस्तु को वास्तविक रूप से बिना प्रमार्जन किये इधर-उधर रख देना। वह 'दुष्प्रमाजितनिक्षेपाधिकरण' है।
(३) सहसा निक्षेप-प्रशक्ति प्रादि के कारण देखी हुई और प्रमाजित की हुई चीज-वस्तु को भी नहीं देखी अप्रमार्जित भूमि पर शीघ्रतापूर्वक रखना, वह 'सहसानिक्षेपाधिकरण' है।
(४) अनाभोग निक्षेप- अर्थात् विस्मृति होने से उपयोग के अभाव में भूमि को देखे बिना और प्रमार्जित भी किए बिना चीज-वस्तु रखनी। वह 'अनाभोगनिक्षेपाधिकरण' है।
यहाँ पर निक्षेपाधिकरण के चार भेद कारण के भेद से कहे हैं। किसी भी चीज-वस्तु को जहाँ रखनी हो तो प्रथम दृष्टि से निरीक्षण करना-देखना उचित है। जिससे चीज-वस्तु रखने पर कोई जीव मरे नहीं। कारण कि, सूक्ष्म जीव ऐसे भी हैं कि बराबर देखते हुए भी दृष्टि में