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________________ २२ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्र [ ६।१० क्रोधादि चार कषाय प्रसिद्ध ही हैं। उनका विशेष वर्णन आगे अष्टमाध्याय के दसवें सूत्र में करेंगे। संसारी जीव-आत्मा दानादि शुभ कार्य एवं हिंसादि अशुभ कार्य करते हैं। उस समय क्रोधादिक चार कषायों में से किसी एक कषाय प्रेरित अवश्य होते हैं। पश्चात् चिन्तवनादि संरंभ, समारंभ, प्रारंभ को मन, वचन और काया से स्वयं करते हैं या कराते हैं अथवा किये हुए कार्य में सहमत होते हैं। इसी के १०८ विकल्प होते हैं ।। ६-६ ।। * अजीवाधिकरणस्य भेदाः * + मूलसूत्रम्निर्वर्तना-निक्षेप-संयोग-निसर्गा द्वि-चतु-द्वि-त्रिभेदाः परम् ॥ ६-१० ॥ * सुबोधिका टीका * निर्वर्तना शब्दस्यार्थं रचना, क्रिया, उत्पत्तिः वा, शरीरमनवचनश्वासोच्छ्वासोत्पत्ति क्रिया मूलगुणनिर्वर्तना। काष्ठादिषु प्राकृतिश्च वा मृदप्रस्तरादिमूत्तिरचना वा वस्त्रादिषु चित्ररचना उत्तरगुण-निर्वर्तना। निर्वर्तनायाः द्वौ भेदौ, यथा(१) दुःप्रयुक्त-निर्वर्तना, (२) उपकरण-निर्वर्तना। परमिति सूत्रक्रमप्रामाण्यादजीवाधिकरणमाह। तत्समासतश्च चतुर्विधम् । यथा-निर्वर्तना निक्षेपः संयोगो निसर्ग इति । तत्र निर्वर्तनाधिकरणं द्विविधम् । मूलगुणनिर्वर्तनाधिकरणं उत्तरगुणनिर्वर्तनाधिकरणं च। तत्र मूलगुणनिर्वर्तनाः पञ्च-शरीराणि वाङ्मनः प्राणापानाश्च । उत्तरगुणनिर्वर्तना काष्ठ-पुस्त-चित्र कर्मादीनि । निक्षेपाधिकरणं चतुर्विधम् । तद्यथा अप्रत्यवेक्षितनिक्षेपाधिकरणं दुःप्रमाजित निःक्षेपाधिकरणं सहसा निक्षेपाधिकरणमनाभोगनिक्षेपाधिकरण मिति । संयोगाधिकरणं द्विविधम् । भक्तपानसंयोजनाधिकरण मुपकरणसंयोजनाधिकरणं च । निसर्गाधिकरणं त्रिविधम् । कायनिसर्गाधिकरणं वाङ्निसर्गाधिकरणं मनोनिसर्गाधिकरणञ्च । निसर्गनाम स्वभावस्य हि, मनवचनकायभिः यथा-स्वाभाविका प्रवृत्तिः जायते, तद्विरुद्ध-दूषितरीतिप्रवर्तनं कायवाङ्मनोनिसर्गाधिकरणानि । सामान्यतया सर्वे योगाः समानाः विशेषदृष्ट्या तस्योत्तरभेदारपि, यद् अनेककर्मप्रकृतिषु बन्धरेव हेतुः ।। ६-१० ।। * सूत्रार्थ-प्रजीवाधिकरण के निर्वर्तना, निक्षेप, संयोग और निसर्ग चार मूलभेद हैं। जिनके क्रमशः दो, चार, दो और तीन उत्तरभेद हैं ।। ६-१० ॥
SR No.022534
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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