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३।११ ] तृतीयोऽध्यायः
[ ३६ जम्बूद्वीप के सात क्षेत्रों तथा छह पर्वतों का विस्तार :
पहले जम्बूद्वीप का प्रमाण एक लाख योजन का है। एक लाख योजन के एक सौ नब्बे (१९०) खण्ड यानी विभाग होते हैं। उसमें एक खण्ड पाँच सौ छब्बीस योजन और एक योजन के उन्नीस विभागों में से छह विभाग हैं। अर्थात् ५२६॥ योजन प्रमाण भरत क्षेत्र का विष्कम्भ है।
सारांश यह है कि-भरतक्षेत्र का एक खण्ड ५२६ योजन और ६ x कला प्रमाण है। भरतक्षेत्र का विस्तार एक खण्ड प्रमाण समझना चाहिए। भरतक्षेत्र से आगे हिमवान पर्वत तथा हैमवत इत्यादि क्षेत्रों का विष्कम्भ दूना-दूना ही जानना। किन्तु यह द्विगुणता विदेह पर्यन्त ही है, आगे नहीं है।
महाविदेह क्षेत्र का विस्तार ६४ खण्ड प्रमाण है। पश्चात क्रमशः पर्वत और क्षेत्र का विष्कम्भ-विस्तार क्रम से प्राधा-प्राधा होता गया है। अर्थात-भरतक्षेत्र का प्रमाण ५२६६ योजन है, इतना ही प्रमाण ऐरावतक्षेत्र का है। हिमवान तथा शिखरी इत्यादि पर्वतों का भी इसी प्रकार क्रम से समान प्रमाण समझना चाहिए। जैसे
(१) हिमवान् और शिखरी का प्रमाण १०५२१ योजन का है। (२) हैमवत तथा हैरण्यवत का प्रमाण २१०५१. योजन का है। (३) महाहिमवान् और रुक्मि का प्रमाण ४२१० योजन का है। (४) हरिवर्ष तथा रम्यक का प्रमाण ८४२१॥ योजन का है। (५) निषध और नील का प्रमाण १६८४२0 योजन का है। (६) विदेह का प्रमाण ३३६८४४. योजन का है। इस उक्त कथन का यन्त्र-कोष्ठक नीचे प्रमाणे है
ॐ यन्त्र-कोष्ठकक
स्थल
भरत
- हिमवन्त
हैमवत
महाहिमवन्त
हरिवर्ष
खण्ड संख्या
योजन
१०५२
२१०५
४२१०
८४२१
कला
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