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श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
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३।११
चतुर्नवति चतुःशतविस्तृतमेव पाण्डुकवनं भवति । उपरि चाधरश्च विष्कम्भः अवगाहश्च समानः महामन्दरेण, चूलिका चेति ।
_ विष्कम्भस्य वर्गेण कृते दशगुणितं मूलं वृत्तपरिक्षेपः । स च विष्कम्भयोः वर्गविशेषमूलं विष्कम्भात् शोध्यं शेषार्धमिषुः । इषुवर्गस्य षड्गुणस्य ज्यावर्गयुतस्य कृते मूलं धनुः काष्ठम् । ज्यावर्गचतुर्भाग्-युक्तमिषु वर्गमिषु विभक्त तत् प्रकृतिवृत्तविष्कम्भः । उदग्धनुःकाष्ठाद् दक्षिणं शोध्यं शेषाधु बाहुरिति । अनेन कारणाभ्युपायैः सर्वेषां क्षेत्राणां सर्वेषाञ्च पर्वतानां आयामविष्कम्भज्येषु धनुः काष्ठपरिमाणानि ज्ञातव्यानि इति ।। ३-११ ।।
* सूत्रार्थ-उपर्युक्त भरतादिक सात क्षेत्रों का विभाग करने वाले क्रमशः पूर्वपश्चिम लम्बे ऐसे हिमवान्, महाहिमवान्, निषध, नील, रुक्मि और शिखरी नाम के 'छह' वर्षधर पर्वत हैं ।। ३-११ ।।
विवेचनामृत उपर्युक्त सात क्षेत्रों का विभाग करने वाले ये छह पर्वत हैं। इनके नाम हिमवान्, महाहिमवान्, निषध, नील, रुक्मि तथा शिखरी हैं, जो वर्षधर नाम से भी प्रसिद्ध हैं। वर्ष यानी क्षेत्र, क्षेत्र की मर्यादा को जो धारण करे वह वर्षधर है। हिमवान् इत्यादि पर्वत भरतादिक क्षेत्रों की सीमा-मर्यादा को धारण करने वाले होने से वर्षधर कहलाते हैं। ये सभी पूर्व और पश्चिम लम्बे हैं। अर्थात इनकी लम्बाई पूर्व से पश्चिम की ओर है। भरत तथा हैमवत क्षेत्र के मध्यवर्ती अर्थात् इनका विभाग करने वाला हिमवान पर्वत है। इसी माफिक हैमवत और हरिवर्षक्षेत्र को विभाजित करने वाला महाहिमवान पर्वत है। हरिवर्ष तथा विदेह को पृथक् करने वाला निषध पर्वत है। विदेह और रम्यक का विभाग करने वाला नील पर्वत है। रम्यक और हैरण्यवत को विभाजित करने वाला रुक्मि पर्वत है तथा हैरण्यवत और ऐरावत को पृथक् करने वाला शिखरी पर्वत है।
उपर्युक्त पर्वतों से भरतादिक सात क्षेत्र विभाजित माने गये हैं। ये पर्वत उन क्षेत्रों के मध्यवर्ती (बीच में) हैं। उनका क्रमशः स्पष्टीकरण यह है कि-भरत से ऐरावत की तरफ जाते हुए प्रथम भरत क्षेत्र, पश्चाद् हिमवान पर्वत, बाद में हैमवत क्षेत्र, पश्चाद् महाहिमवान पर्वत, बाद में हरिवर्ष क्षेत्र, पश्चाद् निषध पर्वत, बाद में महाविदेह क्षेत्र, पश्चाद् नील पर्वत, बाद में रम्यक क्षेत्र, पश्चाद् रुक्मि पर्वत, बाद में हैरण्यवत क्षेत्र, पश्चाद् शिखरी पर्वत, बाद में ऐरावत क्षेत्र। इस तरह क्रमश: जम्बूद्वीप में भरतादिक क्षेत्र तथा हिमवानादि पर्वत आये