________________
३४ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ ४।१५ तीन ऋतुओं का एक प्रयन होता है। दो अयनों का एक संवत्सर यानी वर्ष होता है। पांच वर्ष का एक युग होता है। विशेष
पाँच वर्ष के समूह को युग कहते हैं। युग के भी पाँच प्रकार हैं। वे पाँचों नाम इस प्रकार हैं-चन्द्र, सूर्य, अभिवद्धित, सवन तथा नक्षत्र। पाँच वर्ष के युग में मध्य और अन्त में मिलकर दो अधिक मास पाते हैं। पाँच प्रकार के संवत्सरों में से अभिवद्धित संवत्सर में अधिक मास होता है, तथा अन्त में अभिवद्धित संवत्सर ही हया करता है।
* चन्द्र संवत्सर में मास-महीने का प्रमाण २६ १३ दिन का होता है। इसलिये इस हिसाब से वर्ष में बारह मास-महीनों के ३५४१३ दिन होते हैं। यही चन्द्रसंवत्सर का प्रमाण है।
* सूर्य संवत्सर में महीने का प्रमाण ३०३ दिन का होता है। इसलिए इस हिसाब से वर्ष में बारह मास-महीनों के ३६६ दिन होते हैं।
* अभिवद्धित संवत्सर में मास का प्रमाण ३० ३१ दिन का होता है। इस हिसाब से बारह महीनों के ३८३ १३ दिन होते हैं।
* सवन संवत्सर में मास का प्रमाण ३० दिन का होता है। इस हिसाब से बारह महीनों के ३६० दिन होते हैं ।
* नक्षत्र संवत्सर में महीने का प्रमाण २७ २७ दिन का होता है। इसलिये इस हिसाब से बारह मास के ३२७७ दिन होते हैं ।
इस तरह पाँचों संवत्सर एक साथ प्रवृत्त रहा करते हैं, तथा अपने-अपने समय पर वे पूर्ण होते हैं। पाँच वर्ष के युग में पाँचों ही प्रकार के संवत्सर आ जाते हैं।
___ वर्ष के अनुसार ही युग के भी पाँच नाम समझना। चौरासी लाख वर्ष का एक पूर्वाङ्ग होता है। तथा पूर्वाङ्ग को पूर्वाङ्ग से गुणा करने पर अर्थात् चौरासी लाख को चौरासी लाख से गुणा करने पर एक पूर्वकाल होता है। ये समस्त काल ज्योतिष्कगति की अपेक्षा स्थल हैं। समयादिक सूक्ष्म काल है। ज्योतिष्क की गति से स्थूल काल की ही गिनती होती है, किन्तु समयादिक सूक्ष्मकाल की नहीं।
प्रश्न-समय किसे कहते हैं ?
उत्तर-सर्व जघन्य गति वाले परमाणु को एक आकाश प्रदेश से दूसरे प्राकाशप्रदेश में जाते हुए जितना काल लगता है, उसे एक समय कहा जाता है। यह काल इतना सूक्ष्म है कि-सर्वज्ञ केवली भगवन्त भी इसका भेद नहीं कर सकते, इतना ही नहीं इसका निर्देश भी नहीं कर सकते, ऐसे असंख्य समयों की एक प्रावलिका होती है। संख्यात प्रावलिका का एक उच्छवास-निश्वास