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४।१५ । चतुर्थोऽध्यायः
[ ३३ ___यथा योजनविस्तृतं योजनोच्छायं वृत्तं पल्यमेकरात्राद्युत्कृष्ट सप्तरात्रजातानामङ्गलोम्नां गाढं पूर्ण स्याद् वर्षशताद् वर्षशतादेकैकस्मिन्नुद्धियमाणे यावता कालेन तद् रिक्त स्यात् एतद् पल्योपमम् । तद्दशभिः कोटाकोटिभिः गुणितं सागरोपमम् । तेषां कोटाकोटयश्चतस्रः सुषुमसुषमा, तिस्रः सुषमा, द्वे सुषमदुःषमा, द्विचत्वारिंशद्वर्ष सहस्राणि हित्वा एका दुःषमसुषमा वर्षसहस्राणि एकविंशतिः दुःषमा, तावत्येव दुःषमदुःषमा। ता अनुलोमप्रतिलोमा अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी च भरतैरावतेषु अनाद्यनन्तं परिवर्तन्ते अहोरात्रवत् । तयोः शरीरायुः शुभपरिणामानामनन्तर-गुणहानिवृद्धी अशुभपरिणामवृद्धिहानी । अवस्थिताऽवस्थितगुणाचैकैकानि । यथा च कुरुषु सुषमसुषमा हरिरम्यकवासेषु सुषमा, हैमवत-हैरण्यवतेषु सुषमदुःषमा, विदेहेषु सान्तरद्वीपेषु दुःषमसुषमा इत्यादिमनुष्यक्षेत्रे पर्यायापन्नः कालविभागः ज्ञातव्यः ।
एतेषु भेदेषु बाह्यविभागः कृतः । अन्येऽपि अनेके भेदाः सन्ति कालविभागस्य । सर्वेषां कालविभागानां व्यवहारः प्रधानतया मनुष्यक्षेत्रे एव भवति । मनुष्यलोके ज्योतिष्क चक्रस्य भ्रमणशीलतया एवात्र कालविभागः भवति ।
अत्र शङ्कयते-मनुष्यलोके तु ज्योतिष्चक्र मेरुगिरि प्रदक्षिणति च नित्यमेव जातिशीलः, परन्तु तद्बहि कीदृशः ? ।। ४-१५ ।।
* सूत्रार्थ-इन चर ज्योतिष्क-ज्योतिषीदेव विमानों की गतिविशेष के द्वारा मनुष्यलोक में काल का विभाग होता है ।। ४-१५ ।।
विवेचनामृत "वर्तनापरिणामक्रियापरत्वापरत्वलक्षणकालः" वर्तना, परिणाम, क्रिया, परत्व और अपरत्व ये कालद्रव्य के लक्षण हैं। ऐसा कालद्रव्य अनन्त समयों के समूह रूप है। उस काल का विभाग इन ज्योतिष्क देवों के विमानों की गति विशेष के द्वारा होता है।
मुख्य और प्रौपचारिक अर्थात् निश्चय तथा व्यवहार इस तरह काल दो प्रकार का है। मुख्य काल अनंत समयात्मक है। यह काल एकस्वरूप है अर्थात भेदरहित है। इसलिये भेदरहित मुख्यकाल के ज्योतिष्क-ज्योतिषी विमानों की गति से दिवस और रात्रि इत्यादिक के भेद होते हैं। पूर्वदिशा के अमुक नियत स्थान से सूर्य की गति के प्रारम्भ को सूर्योदय कहने में आता है। तथा पश्चिम दिशा के अमुक नियत स्थान में सूर्य के पहुंचने को सूर्यास्त कहने में आता है। सूर्योदय से प्रारम्भ होकर सूर्यास्त तक का काल दिन-दिवस कहा जाता है, तथा सूर्यास्त से प्रारम्भ होकर
सूर्योदय तक का काल रात-रात्रि कही जाती है। पन्द्रह रात्रि-दिन का एक पक्ष होता है। शुक्ल ___ और कृष्ण रूप दो पक्ष का एक मास-महीना होता है। दो मास-महीने की एक ऋतु होती है।