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श्रीतत्त्वार्याधिगमसूत्रे
[ हिन्दी पद्यानुवाद
भरतक्षेत्र कर्मभूमि के, नाम से पहली गिनी । ऐरवत को दूसरी गिन के, विदेह तीसरी गिनी ।। देवकुरु को छोड़कर के, उत्तरकुरु भी छोड़कर । विदेह तीसरी कर्मभूमि, मानना भ्रम त्याग कर ।। १६ ।। नर तथा तिर्यंच का उत्कृष्टायु त्रिपल्योपम का । जानना फिर जघन्यायु, अन्तर्मुहूर्त दोनों का ॥ उत्कृष्टायु प्रबलतर है, श्रेष्ठ भी मानी गई । अन्तर्मुहूर्त अल्पायु है, सूत्र साक्षी पूर रही ॥ १७ ।।
तत्त्वार्थाधिगमे सूत्रे, कृतेऽनुवादे हरिगीतिकायाम् ।
पद्यानुवादे सरसः कृतोऽयं, पूर्णस्तृतीयः हितबोधनाय ॥ ॥ इति श्री तत्त्वार्थाधिगम सूत्र के तृतीयाध्याय का हिन्दी पद्यानुवाद समाप्त ।