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________________ हिन्दी पद्यानुवाद ] । तृतीयोऽध्यायः इन सातों क्षेत्रों की सीमा, करे अलग वे गिरिवरा ।। जम्बूद्वीप में षट् कहा ये, जिनकी शोभा अनुपमा । जो पूर्व-पश्चिम दीर्घ हैं, सुन्दर नामों से भूषित । हैं एक से एक सुन्दर, वन सर गिरि निर्भर गुजित ।। १२ ।। प्रथम गिरि का नाम हिमवान, द्वितीय महाहिमवन्त है । तृतीय नाम है निषधगिरि, चतुर्थ नाम निलवन्त है ।। रुक्मि पंचम गिरि कहा है, छठा शिखरी मानते । इन छ'ही गिरि नाम वदते, मोह मर्म के ही भेदते ॥ १३ ॥ जम्बूद्वीप में क्षेत्र सात, तथा छ'ही गिरिवर हैं । दूसरे धातकी खण्डमहीं, क्षेत्र दुगुणे सुगिरि हैं । पुष्कराध द्वीप में भी, चौदह क्षेत्र बारह गिरि हैं । जम्बूद्वीप में सब वस्तुएँ, यहाँ द्विगुणित मानी हैं ॥ १४ ।। ॐ मूलसूत्रम् प्राग मानुषोत्तरान्मनुष्याः ॥ ३-१४ ॥ प्रार्या म्लेच्छाश्च ॥ ३-१५ ॥ भरतरावतविदेहाः कर्मभूमयोऽन्यत्र देवकुरूत्तरकुरुभ्यः ॥ ३-१६ ॥ नृस्थिती परापरे त्रिपल्योपमान्तर्मुहूर्ते ॥ ३-१७ ॥ तिर्यग्योनीनां च ॥ ३-१८ ॥ * हिन्दी पद्यानुवाद मानुषोत्तर .. भूधरान्तर-, वत्ति ढाई द्वीप नर है । वे जन्म-मरण-विरति-मुक्ति, आत्मा के साध्य साधन हैं ।। आर्य और म्लेच्छ ये दो, भेद मानव जाति के । जो धर्म और अधर्म सेवे, स्वयं विविध भाँति के ॥ १५ ॥
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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