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________________ द्वितीयाध्यायः [ ४. छाया- कतिविधा भदन्त इन्द्रियलन्धिः प्रजमा ? गौतम! पंचविधा इन्द्रिय लब्धिः प्रज्ञप्ता। कतिविधः भदन्त इन्दियोपयोगः प्रज्ञप्तः ? गौतम! पञ्चविधः इन्द्रियोपयोगः प्रज्ञप्तः। प्रश्न-भगवन् ! इन्द्रिय लब्धि कितने प्रकार की बतलाई गई है ? उत्तर-गौतम ! इन्द्रियलब्धि पांच प्रकार की बतलाई गई है । प्रश्न-भगवन् ! इन्द्रियोपयोग कितने प्रकार का बतलाया गया है ? उत्तर-गौतम ! इन्द्रियोपयोग पांच प्रकार का बतलाया गया है। संगति-भावेन्द्रिय के दो भेद होते हैं-लब्धि और उपयोग। "स्पर्शनरसनघ्राणाचक्षुः श्रोत्राणि।" " स्पर्शरसगन्धवर्णशब्दास्तदर्थाः :” २. २०. सोइन्दिए चक्खिदिए घाणिदिए जिभिदिए फासिदिए । प्रज्ञापना इन्दिय पद १५ पंच इन्दियत्था पण्णत्ता, तं जहा-सोइन्दियत्थे जाव फासिंदियत्थे। स्थानाङ्ग स्थान ५ उद्देश्य ३ सूत्र ४४३ छाया- श्रोत्रेन्द्रियश्चक्षुरिन्द्रियः घाणेन्द्रियः जिव्हेन्द्रियः स्पर्शनेन्द्रियः । पञ्चेन्द्रियार्थाः प्रज्ञप्तास्तद्यथा- श्रोत्रेन्द्रियार्थः यावत् स्पर्शने न्द्रियार्थः। भाषा टीका - (इन्द्रियां पांच होती हैं) कर्ण इन्द्रिय, नेत्र इन्द्रिय, घ्राण इन्द्रिय, जिव्हा इन्द्रिय और स्पर्शन इन्द्रिय । - पांचों इन्द्रियों के विषय भी पांच हो हाते हैं- शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श। संगति – दोनों सूत्र और आगम वाक्य के अक्षरों में कुछ अन्तर नहीं है।
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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