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________________ ४६ ] तत्त्वार्थ सूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय : संगति - इन सभी आगम वाक्यों और सूत्रों के अक्षर प्राय: मिलते हैं । — 66 ' निर्वृत्युपकरणे द्रव्येन्द्रियम् । " २. १७. भंते! इंदियउवाच पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे कएविहे इंदियउवच पण । कवि णं भंते! इन्दियणिवत्तणा पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचविहा इन्दियशिवत्तणा पण्णत्ता । प्रज्ञापना उ० २ पद १५. छाया - कतिविधः भदन्त ! इन्द्रियोपचयः प्रज्ञप्तः १ गौतम ! पंचविधः इन्द्रियोपचयः प्रज्ञप्तः । कतिविधा भदन्त ! इन्द्रियनिर्वतना प्रज्ञप्ता ? गौतम! पञ्चविधा इन्द्रियनिर्वतना प्रज्ञप्ता । प्रश्न • भगवन् ! इन्द्रियोपचय कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर - गौतम ! इन्द्रियोपचय पांच प्रकार का कहा गया है। प्रश्न -- - भगवन् ! इन्द्रिय निर्वतना कितने प्रकार की कही गई है ? उत्तर - गौतम ! इन्द्रिय निर्वतना पांच प्रकार की कही गई है। संगति - सूत्र में द्रव्येन्द्रियों के दो भेद माने हैं - निर्वृति और उपकरण । श्रागम वाक्य में उपकरण को ही इन्द्रियोपचय कहा गया है। 55 66 लब्ध्युपयोगो भावेन्द्रियम् । २, १८. कतिविहा गां भंते ! इन्दियलद्धी पण्णत्ता ? गोयमा ! पंच विहा इन्दियलद्वी पण्णत्ता । प्रज्ञापना उ० २, इन्द्रियपद १५. कतिविहा गं भंते! इन्दिय उवउगद्धा पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचविहा इन्दियउवगद्धा पण्णत्ता । प्रज्ञापना उ० २. इन्दियपद १५.
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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