SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पचमोऽध्याय: — प्रश्न -भगवन्! परमाणु पुद्गल नित्य है अथवा अनित्य १ उत्तर - गौतम ! द्रव्यार्थिक नय से नित्य है तथा वर्ण पर्यायों से लेकर स्पर्श पर्यायों तक की अपेक्षा अनित्य है । संगति – सूत्र में कहा है कि जो तद्भावरूप से अव्यय है सो ही नित्य है । सूत्र - [ १३७ कार का आशय यहां द्रव्यों से है कि द्रव्य नित्य हैं। किन्तु आगमवाक्य ने द्रव्य के नित्य और अनित्य दोनों रूपों को स्पष्ट कर दिया है। अर्पिताऽनर्पितसिद्धेः । ५, ३२. न जघन्यगुणानाम् । अप्पितणप्पिते । स्थानांग० स्थान १० सूत्र ७२७. छाया - अर्पितानर्पिते । भाषा टीका - - जिसको मुख्य करे सो अर्पित और जिसको गौण करे सो अनर्पित है । इन दोनों नयों से वस्तु की सिद्धि होती है। स्निग्धरूक्षत्वाद्बन्धः । ५, ३३. ५, ३४. ५, ३५. गुणसाम्ये सदृशानाम् । द्वयधिकादिगुणानान्तु । बन्धेऽधिको पारिणामिकौ च । ५, ३६. ५, ३७. बंधणपरिणामे णं भंते! कतिविधे पगणते ? गोयमा ! दुविहे
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy