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तत्त्वार्थसूत्रजैनागमसमन्धयः
भाषा टीका - चक्षु पर्शन वाले को घट, पट, रथ आदि द्रव्यों में चक्षु, दर्शन होता है।
संगति - यह सभी द्रव्य चक्षु दर्शन द्वारा जाने के कारण चाक्षुष कहलाते हैं। पाशुर द्रव्य भी भेद और संघात दोनों से ही बनते हैं। सद्रव्यलक्षणम् ।
५, २६. सहव्वं था।
व्याख्या प्रज्ञप्ति शत०८ उ०१ सत्पदद्वार. छाया- सद्रव्यं वा । भाषा टीका-द्रव्य का लक्षण सत् है।
उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत्। माउपाणुभोगे (उपन्ने वा विगए वा धुवे वा।)
स्थानांग स्थान १०. या- मातृकानुयोगः (उत्पनः वाः विगतः वा, ध्रुवः पा)।
भाषा टीका - उत्पन्न होने वाले, नष्ट होने वाले और ध्रुव को मातृकानुयोग कहते है। [और वही सत है] तदावाऽव्ययं नित्यम् ।
५, ३१. परमाणुपोग्गलेणं भंते! किं सासए असासए ? गोयमा! दव्वट्ठयाए सासए पन्नपजवेहिं जाव फासपजवेहिं असासए ।
व्याख्याप्रज्ञप्ति० शतक १४ उद्दे० ४ सूत्र ५१२.
जीवाधिगम० प्रतिपत्ति ३ उद्दे० १ सत्र ७७ छाया- परमाणुपुद्गलः भगवन् ! कि शाश्वतः अशाश्वतः? गौतम! द्रव्या
यतया शाश्वतः, वर्णपर्यायैः यावत् स्पर्शपर्यायैः प्रशाश्वतः ।