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________________ १३६ ] तत्त्वार्थसूत्रजैनागमसमन्धयः भाषा टीका - चक्षु पर्शन वाले को घट, पट, रथ आदि द्रव्यों में चक्षु, दर्शन होता है। संगति - यह सभी द्रव्य चक्षु दर्शन द्वारा जाने के कारण चाक्षुष कहलाते हैं। पाशुर द्रव्य भी भेद और संघात दोनों से ही बनते हैं। सद्रव्यलक्षणम् । ५, २६. सहव्वं था। व्याख्या प्रज्ञप्ति शत०८ उ०१ सत्पदद्वार. छाया- सद्रव्यं वा । भाषा टीका-द्रव्य का लक्षण सत् है। उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत्। माउपाणुभोगे (उपन्ने वा विगए वा धुवे वा।) स्थानांग स्थान १०. या- मातृकानुयोगः (उत्पनः वाः विगतः वा, ध्रुवः पा)। भाषा टीका - उत्पन्न होने वाले, नष्ट होने वाले और ध्रुव को मातृकानुयोग कहते है। [और वही सत है] तदावाऽव्ययं नित्यम् । ५, ३१. परमाणुपोग्गलेणं भंते! किं सासए असासए ? गोयमा! दव्वट्ठयाए सासए पन्नपजवेहिं जाव फासपजवेहिं असासए । व्याख्याप्रज्ञप्ति० शतक १४ उद्दे० ४ सूत्र ५१२. जीवाधिगम० प्रतिपत्ति ३ उद्दे० १ सत्र ७७ छाया- परमाणुपुद्गलः भगवन् ! कि शाश्वतः अशाश्वतः? गौतम! द्रव्या यतया शाश्वतः, वर्णपर्यायैः यावत् स्पर्शपर्यायैः प्रशाश्वतः ।
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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