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________________ चतुर्थाध्यायः [ १२१ इसी प्रकार जो पहिले २ की उत्कृष्ट स्थिति है वह बाद २ वाले की जघन्य स्थिति है ॥ १६१॥ संगति-इन सूत्रों में और आगम वाक्य में कोई भी अन्तर नहीं है। भवनेषु च। ४, ३७. भोमेजाणं जहणणेणं दसवाससहस्सिया । ___ उत्तरा० अध्यन ३६ गाथा २१७. छाया- भौमेयानां जघन्येन दसवर्षसहस्रिका । भाषा टीका-भवनवासी देवों की भी जघन्य आयु दश सहस्र वर्ष होती है। व्यन्तराणाञ्च। ४, ३८. परा पल्योपमधिकम् । ४, ३६. वाणमंतराणं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णता ? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्साई उक्कोसेणं पलिमोवमं । प्रज्ञापना० स्थितिपद ४. छाया- व्यन्तराणां भगवन् देवानां कियती स्थितिः प्रकप्ता ? गौतम ! जघन्येन दशवर्षसहस्रिका उत्कर्षेण पल्योपमा। प्रश्न-भगवन् व्यन्तरों की भायु कितनी होती है ? उत्तर-जघन्य दशसहस्र वर्ष और उत्कृष्ट एक पल्य। ज्योतिष्काणाञ्च । ४,४०. तदष्टभागोऽपरा। ४, ४१.
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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