SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२० ] तत्त्वार्थ सूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय : मानी गई है। उत्कृष्ट आयु के समान जघन्य आयु का भेद स्वयं लगा लेना चाहिये । किन्तु यह आयु का अन्तर मतान्तर है। इसके अतिरिक्त आयु का विषय तात्विक विषय भी नहीं है कि उसका भेद वास्तविक भेद समझा जावे । नारकाणां च द्वितीयादिषु । दशवर्षसहस्राणि प्रथमायां । ४, ३५. ४, ३६. सागरोवममेगं तु, उक्कोसेा वियाहिया । पढमाए जहन्नेणं, दसवास सहस्सिया ।। १६० ।। तिण्णेव सागरा ऊ, उक्कोसेण वियाहिया । दोच्चाए जहन्ने, एगं तु सागरोवमं ।। १६१ ।। उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन ३६ । एवं जा जा पुव्वस्स उक्कोसटिई अत्थि ता ता परमो परओ जहण्याठिई अष्वा । छाया सागरोपममेकं तु, उत्कर्षेण व्याख्याता । प्रथमायां जघन्येन, दशवर्षसहस्रिका ॥ १६० ॥ त्रीण्येव सागरोपमाणि तु, उत्कर्षेण व्याख्याता । द्वितीयायां जघन्येन, एकं तु सागरोपमम् ।। १६१ ।। एवं या या पूर्वस्य उत्कृष्टस्थितिरस्ति सा सा परतः परतः जघन्यस्थितिः ज्ञातव्या । भाषा टीका - प्रथम नरक भूमि की जघन्य आयु दश सहस्र वर्ष की होती है। और उत्कृष्ट आयु एक सागर होती है ॥ १६० ॥ दूसरे नरक की जघन्य आयु एक सागर होती है और उत्कृष्ट आयु तीन सागर होती है ॥ १६९ ॥
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy