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________________ 274 46. इसिभासियाई, 24.20 47. इसिभासियाई, 24.25 48. इसिभासियाई, 22.1 49. इसिभासियाई, 31.7-8 50. इसिभासियाई, 1.2 51. इसि भासिया, 5.3 52. इसिभासियाई, 17.8 जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन 53. (अ) सिवमयलमरुयमक्खयमत्वाबाहमपुणरावत्तं सासयं ठाणं । 9.3 (ब) सिवमयलमरुयमक्खमव्वाबाहमपुणरावत्तयं सिद्धि गतिलामधिज्जं ।। 23.2 54. (i) दुदंता इंदिया पंच, संसाराए सरीरिणं। ते च्चेव णियमिता संता, ज्जाणाए भवंति हि । । - इसिभासियाइं, 16.3 (ii) इसी से मिलती-जुलती गाथा वर्द्धमान अध्ययन में भी प्राप्त होती है, यथा दुद्दता इंदिया पंच, संसाराय सरीरिणं । ते चेव णियमिता सम्मं णेव्वाणाय भवंति हि । । - इसिभासियाइं, 219.13 55. वही, 16.1 56. इसिभासियाई, 29.2 57. मणुण्णम्मि अरज्जंते, अदुट्ठे इतरम्मिय। असुत्ते अविरोधीणं, एवं सोते पहिज्जति । । - इसि भासियाइं, 29.4 58. इसिभासियाई, 29.14-15 59. इसिभासियाई, 29.16 60. जित्ता मणं कसाए य, जो सम्मं कुरुते तवं । संदिप्यते स सुद्धप्पा, अग्गी वा हविसाऽऽहुते । । - इसि भासियाई, 29.17 61. आतट्ठे जागरो होहि, मा परट्ठाहिधारए । आतट्ठ हायते तस्स, जो परट्ठाहि धारए । । - इसिभासियाइं 35.15 62. इसिभासियाई, 35.14 63. इसिभासियाई, 35.13 64. इसिभासियाई, 35.17 65. इसिभासियाइं, 35.20 66. इसि भासियाइं, 35.24
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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