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जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन
25. द्रष्टव्य, प्रमाणपरीक्षा, वीरसेवामन्दिर ट्रस्ट, वाराणसी, 1977, पृ. 44-45 26. उपलम्भानुपलम्भनिमित्तं व्याप्तिज्ञानमूहः। - परीक्षामुख 3.7 27. साधनात् साध्यविज्ञानमनुमानम् ।- न्यायविनिश्चय, 170 28. से किं तं अणुमाणे? से तिविहे पण्णत्ते, तंजहा- पुव्ववं, सेसवं, दिट्ठसाहम्मवं ।
अनुयोगद्वारसूत्र,
अनुमानप्रमाणद्वार। 29. साध्याविनामावित्वेन निश्चितो हेतुः। - परीक्षामुख, 3.11 30. (1) यत्र धूमस्तत्राग्निरिति साहचर्यनियमो व्याप्तिः। - केशवमिश्र, तर्कभाषा,
अनुमाननिरूपण, चौखम्भा संस्कृत संस्थान, वाराणसी, 1977 (2) स्वाभाविकश्च सम्बन्धो व्याप्तिः। - तर्कभाषा, अनुमाननिरूपण 31. द्रष्टव्य, डॉ. धर्मचन्द जैन, बौद्ध प्रमाणमीमांसा की जैनदृष्टि से समीक्षा, पार्श्वनाथ ____विद्यापीठ, वाराणसी, 1995, पृ. 260 32. परीक्षामुख 3.8-9 33. प्रमाणनयतत्त्वालोक, 3.7 34. पक्षीकृत एव विषये साधनस्य साध्येन व्याप्तिरन्ताप्तिः, अन्यत्र तु बहिर्व्याप्तिः।
प्रमाणनयतत्त्वालोक, 3.38 35. पक्षहेतुवचनात्मकं परार्थमनुमानमुपचारात्।- प्रमाणनयतत्त्वालोक, 3.23 36. दश अवयवों के नाम दो प्रकार से उल्लिखित हैं। प्रथम प्रकार में - 1. प्रतिज्ञा, 2.
प्रतिज्ञाविशुद्धि, 3. हेतु, 4. हेतुविशुद्धि, 5. दृष्टान्त, 6. दृष्टान्तविशुद्धि, 7. उपसहार, 8. उपसंहारविशुद्धि, 9. निगमन एवं 10. निगमनविशुद्धि का उल्लेख है। द्वितीय प्रकार में- 1. प्रतिज्ञा, 2. प्रतिज्ञाविभक्ति, 3. हेतु, 4. हेतुविभक्ति, 5. विपक्ष, 6. विपक्षप्रतिषेध, 7. दृष्टान्त, 8. आशंका, 9. आशंकाप्रतिषेध एवं 10. निगमन का निरूपण है। वात्स्यायन के 'न्यायभाष्य' में भी दश अवयवों का उल्लेख मिलता है, किन्तु उनमें प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय एवं निगमन के अतिरिक्त जिज्ञासा, संशय, शक्यप्राप्ति,
प्रयोजन एवं संशयव्युदास की गणना की गयी है। - द्रष्टव्य, न्यायभाष्य 1.1.32 37. अभिधेयं वस्तु यथावस्थितं यो जानीते, यथाज्ञानं चाभिधत्ते स आप्तः।
प्रमाणनयतत्त्वालोक, 4.4 38. द्रष्टव्य, प्रमाणनयतत्त्वालोक 6.2-5 39. तत्प्रमाणतः स्याद्भिन्नमभिन्नं च, प्रमाणफलत्वान्यथानुपपत्तेः।- प्रमाणनयतत्त्वालोक 6.6