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श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् (१०) सूक्ष्मसंपरायच्छद्मस्थवीतरागयोश्चतुर्दश ।
सूक्ष्म संपराय चारित्र वाले को और छद्मस्थ वीतराग चारित्र वाले को चवदा परिसह होते हैं।
क्षुधा, पिपासा, शीत, उष्ण, दंशमशक, चर्या, प्रज्ञा, अज्ञान, अलाभ, शय्या वध, रोग, तृणस्पर्श और मल ये चवदह होते हैं।
एकादश जिने । तेरमे गुणठाणे जिन-केवली को ग्यारा परिसह होते हैं, क्षुधा, पिपासा, शीत, उष्ण, दंशमशक, चर्या, शय्या, वध, रोग, तृणस्पर्श
और मल ये अग्यारा। (१२) बादरसंपराये सर्वे ।
बादर संपराय चारित्र में (नव में गुण ठाणे तक) सब यानी बाईस परिसह होते हैं। (१३) ज्ञानावरणे प्रज्ञाऽज्ञाने। __ज्ञानावरण के उदय से प्रज्ञा और अज्ञान ये दो परिसह होते हैं. (१४) दर्शनमोहान्तराययोरदर्शनालाभौ ।
दर्शनमोहावरण और अन्तराय कर्म के उदय से अदर्शन (मिथ्यात्व) और अलाभ परिसह अनुक्रम से होते हैं । (१५) चारित्रमोहे नाग्न्यारतिस्त्रीनिषद्याऽऽक्रोशयाचना
सत्कार-पुरस्काराः। चारित्र मोहं के उदय से नाग्न्य, मरति, स्त्री, निषद्या, आकोश, याचना और सत्कार-पुरस्कार ये सात परिसह होते हैं।
वेदनीये शेषाः ।