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नवमोऽध्यायः
६५ वेदनीय के उदय से बाकी के अग्यारा परिसह होते हैं. जिनकेवली को जो अग्यारा होते हैं वे यहाँ जानना.
यानी ज्ञानावरण, दर्शनमोह, अन्तराय और मोह के उदय से ११ परिसह होते हैं, उन सिवाय ११ वेदनीय के उदय से होते हैं। (१७) एकादयो भाज्या युगपदेकोनविंशतः । ___ इन बाईस परिसह में से १ से लगाकर १६ तक एक साथ एक पुरुष को हो सकते हैं, क्योंकि शीत और उष्ण में से एक होता है, और चर्या, निषद्या तथा शय्या, इन तीन में से एक हो सकता है, क्योंकि एक दूसरे के विरोधी हैं इसलिये एक साथ १६ परिसह होते हैं। (१८) सामायिकच्छेदोपस्थाप्यपरिहारविशुद्धिसूक्ष्मसंपराय
यथाख्यातानि चारित्रम् । सामायिक संयम, २ छेदोपस्थाप्य संयम, ३ परिहारविशुद्धि संयम, ४ सूक्ष्मसंपराय संयम और ५ यथाख्यात संयम ये चारित्र के भेद हैं।
सम यानी सरीखा है, मोक्ष साधन में सामर्थ्य जिन का ऐसे ज्ञान, दर्शन, चारित्र का आय यानी लाभ है जिसमें वह अथवा सम यानी मध्यस्थ भाव (राग द्वेष राहत पणा) का लाभ जिसमें होता है वह सामायिक चारित्र.
पहले के सदोष या निर्दोष पर्याय को छेदकर गणाधिपों का फिर से दिया हुवा पंच महाव्रत रूप चारित्र वह छेदोपस्थाप्य चारित्र । ___ परिहार नाम के तप को ज्यादा शुद्धि जिसमें है वह परिहार विशुद्ध चारित्र, वह इस माफिक-नव साधुओं का गच्छ निकले उन में से चार जणे तपस्या करें, चार जणे वैयावच करें और एक