________________
51
7. संकलनात्मक ज्ञान
प्रत्येक इन्द्रिय का अपना-अपना निश्चित विषय होता है। एक इन्द्रिय, दूसरी इन्द्रिय के विषय को नहीं जानती । 'मैं स्पर्श, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श को जानता हूँ' इस प्रकार का संकलनात्मक ज्ञान किसी भी एक इन्द्रिय के द्वारा होना संभव नहीं है। यह संकलनात्मक ज्ञान जिसे होता है, वह आत्मा है।
8. कर्त्ता और भोका
जिस प्रकार हर क्रिया का कोई-न-कोई कर्त्ता अवश्य होता है, उसी प्रकार देखने, सुनने, पढ़ने आदि की क्रिया का कर्त्ता आत्मा है। जिस प्रकार भोजन, वस्त्र आदि का कोई भोक्ता अवश्य होता है, उसी प्रकार शरीर का भी कोई भोक्ता होना चाहिए और वह भोक्ता आत्मा ही हो सकता है।
इस प्रकार जैन आचार्यों ने अनेक तर्कों के माध्यम से आत्मा के अस्तित्व को सिद्ध किया है।
4. आत्मा का परिमाण
आत्मा का परिमाण (size) क्या है। इस सन्दर्भ में भारतीय दर्शनों में भिन्न-भिन्न मत प्राप्त होते हैं, जिनमें तीन मत विशेष प्रचलित हैं
1. आत्मा अणु परिमाण वाला है।
2. आत्मा सर्वव्यापी है।
3. आत्मा शरीर परिमाण है।
1. आत्मा का अणु परिमाण
रामानुजाचार्य, माधवाचार्य, वल्लभाचार्य आदि आत्मा को अणु परिमाण वाला मानते हैं। बृहदारण्यक उपनिषद में आत्मा को अंतर