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खरगोश जब यह कह रहा था, तभी गीदड़, बोला "मुझे लगता है कि यह वार्ता प्राज की इस संगोष्ठी में सम्पन्न नहीं हो पायेगी। अब भोजन का समय भी हो चुका है। इसलिए आज की वार्ता को यहीं विराम देकर प्रस्थान करते हैं। फिर किसी दिन ईश्वर स्वरूप का निर्णय सर्वसम्मति से करेंगे ।
सभी ने गीदड़ की बात सादर मान ली। पशु सभा विसर्जित हुई।
* ईश्वर अद्वितीय प्रादर्श स्वरूप है *
अनन्तज्ञान-विज्ञानमय, सच्चिदानन्दरूप, सर्वदा दोषमुक्त भगवान/ईश्वर अलौकिक आदर्श ही है। जो उसे सृष्टिकर्ता, पालनकर्ता, संहारकर्ता मानते हैं, संसार के उन कार्यों को सम्पन्न करने के लिए उसे अस्त्र-शस्त्रधारी मानते हैं; वह उपयुक्त प्रतीत नहीं होता, क्योंकि शुद्ध-बुद्ध-मुक्त स्वरूपी भगवान क्यों भला कीचड़ से (दोषों से) भरे संसार का संचालन कर अपने आपको
जगत्कर्तृत्व-मीमांसा-२४