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दूषित बनाये ? स्त्रियों के साथ वह क्यों विलास करे ? वह तो वीतराग है ।
यदि प्राकृत पुरुष की तरह से ईश्वर भी हो तो विवेकी पुरुष उसका स्मरण, पूजन, भजन क्यों करें ? विश्व जगत् तन्त्र तो स्वतन्त्र है ।
वह ईश्वर किसी
भी प्रकार का प्रपञ्च नहीं करता है । वह कर्मजालों से मुक्त पवित्रात्मा होकर परमात्मा के महनीय, वन्दनीय
पद पर प्रतिष्ठित होकर पूजनीय एवं वन्दनीय है । देव है | पंक्ति भी अनुसन्धेय है
विश्व जगत् का प्राराध्य, वह तो अनन्त ज्ञानानन्दमय श्रीमद् भगवद् गीता की यह
इस सन्दर्भ में
'न कर्तृत्वं न कर्माणि, लोकस्य सृजति प्रभुः ।
अर्थात् - 'ईश्वर न संसार का कर्त्ता है, न संसार के कर्मों का सर्जक है ।'
नित्य चैतन्यमय, अनन्तज्ञानवान् वीतराग भगवान / देव ही ईश्वर है ।
।। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
जगत्कर्त्ता त्व-मीमांसा -२५