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________________ उनके शरीर को विदीर्ण करके खाते हैं । हाथी भी सूड को इधर-उधर घुमाते हुए अहंकार अभिमान में मत्त हुआ घूमता ही है । क्या उसका श्राचरण - अभिमान की कोटि में नहीं आता है ? चाबुक लगते ही प्रश्व-घोड़े की तेज रफ्तार क्या चञ्चलता के बिना सम्भव है ? बैल की बुद्धि के सन्दर्भ में क्या कोई भी बकरे की बात का विरोध करने को तैयार है ? मनुष्य भी बुद्धिहीन व्यक्ति को 'बैल है' ऐसा कहते हैं । गधे ने बकरे के द्वारा 'असभ्य' कहे जाने का विरोध नहीं किया, किन्तु वह भी मन में भली भाँति जानता है कि इसने ऐसा क्यों कहा है ? कुत्ते ने जो कहा है कि भगवान जागरणशील है तो भला क्या भगवान प्रमत्त है कि वह जागरण कर्म में प्रवृत्त हो ? सारांशरूप में मैं कहता हूँ कि, 'विशाल शरीर वालों का दर्शन भी खोटा है ।' अतः भगवान 'दीर्घकाय वाले नहीं, अपितु सूक्ष्म शरीर वाले हैं । वे हिंसक नहीं हैं, भी नहीं हैं, किन्तु सरल एवं निर्दोष हैं । क्रूर जगत्कत्तृत्व-मीमांसा- २३
SR No.022444
Book TitleVishva Kartutva Mimansa Evam Jagat Kartutva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Jinottamvijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1996
Total Pages116
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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