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________________ सिंह और व्याघ्र दोनों के वचन सुनकर पर्वत की भाँति विशालकाय गजराज (हाथी) खड़ा होकर बोला, 'आप सभी ईश्वर स्वरूप की रहस्यात्मकता मुझसे सुनें । इन सिंह-व्याघ्र की उक्ति सुनकर मुझे हँसी आती है। ये दोनों क्रमशः कहते हैं कि-ईश्वर केसरीवत् केशवान तथा व्याघ्रवत् पीत-कृष्णचिह्नाङ्कित होगा। यह बात सर्वथा मिथ्या है, क्योंकि मैं स्वयं ईश्वर के विशाल स्वरूप का नमूना हूँ। चित्र-विचित्र जगत् के निर्माता का क्या मेरे स्वरूप की भाँति विशालकाय स्वरूप नहीं होना चाहिए । मेरे मस्तक पर केशराशि नहीं है, न बदन पर पीले तथा काले रङ्ग के मिश्रित चिह्न; तो भला मुझ से भी विशाल उस ईश्वर के सिंह-व्याघ्र द्वारा कथित उक्त गुण कैसे सम्भव हैं ? अतः मैं कहता हूँ, वह परमात्मा प्रतीव विशालकाय, परमशक्तिशाली, धीर-गम्भीर, सात्त्विक आहार-विहारकारी, महान् शुण्डादण्डवान (सूडवाला) होगा, जिससे वह दूर से भी वस्तुओं को ग्रहण करने तथा इधर से उधर व्यवस्थित करने में सक्षम हो सके। सिंह, व्याघ्र एवं हाथी के वचनों को सुनकर हिनहिनाते हुए, जल्दी से खड़े होकर अश्व (घोड़े) ने कहा, "वह भगवान समस्त चल एवं अचल जगत् का जगत्कर्तृत्व-मीमांसा-१७
SR No.022444
Book TitleVishva Kartutva Mimansa Evam Jagat Kartutva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Jinottamvijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1996
Total Pages116
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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