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एकत्र हो किसी-न-किसी विषय पर विचार-विमर्श करते थे।
___ एक बार उन्होंने मिलकर ईश्वर के स्वरूप पर विचार-विमर्श करना शुरू किया। सर्वप्रथम वनसम्राट सिंह उठकर धीर गम्भीर स्वर में बोला-पहले समस्त वन-अरण्य जीव ईश्वर के स्वरूप-विषयक मेरा मन्तव्य सुनें।
"जिसे भगवान या ईश्वर कहा जाता है, वह अवश्य ही सुन्दर केशावली युक्त, मनोहर एवं महापराक्रमी होगा।"
वनराज केसरीसिंह के उक्त वचन सुनकर, अपने प्रासन से उठकर व्याघ्र (बाघ) ने कहा, "मेरे हृदय की बात सुनो, वह भगवान केसरीसिंह की तरह आलसी नहीं अपितु स्फूतिमान्, धीर, गम्भीर, महापराक्रमी एवं पीले तथा काले रङ्ग के चिह्नों से सुशोभित होगा। व्यर्थ की केशावली की उसे क्या आवश्यकता हो सकती है, पाप ही विचार करें।"
जगत्कर्तृत्व-मीमांसा-१६ .