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कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य महाराजश्री ने भी महादेव-स्तोत्र में उक्त सन्दर्भ में कहा है कि"भवबीजाङ्क र-जननाः, रागाद्याः क्षयमुपागता यस्य । ब्रह्मा वा विष्णुर्वा, हरो जिनो वा नमस्तस्मै ॥"
अर्थात्-संसारबन्ध के बीजों (कारणों) को उत्पन्न करने वाले राग, द्वेष, क्रोध, मान, माया, लोभ इत्यादि जिसके समाप्त हो चुके हों, ऐसे दोषरहित परमात्मा चाहे ब्रह्मा, विष्णु, शिव या जिन हो, उन्हें मेरा सादर नमन ।
ईश्वर में यदि राग-द्वेष स्वीकार किये जायें तो महान् क्षति की सम्भावना होगी, क्योंकि एक प्राणी के लिए राग तथा दूसरे के लिए द्वष करके, सामान्य मनुष्य की तरह आचार करने वाले को हम क्यों भला ईश्वर के रूप में पहचानें ?
* ईश्वर-स्वरूप के विषय में पशु-संवाद कथा *
किसी वन-जंगल में सिंह, बाघ, हाथी, घोड़ा, बैल, गधा, कुत्ता, बकरा, खरगोश, गीदड़ आदि रहते थे। वे
जगत्कर्तृत्व-मीमांसा-१५