________________
सर्वज्ञ, सर्वशक्तिशाली स्वीकार किया गया है सृष्टि का कर्त्ता नहीं, परन्तु यह बात ठीक नहीं है क्योंकि न्यायभाष्य में कहा है
'यथा पिताऽपत्यानां तथा पितृभूतईश्वरो भूतानाम्'
कुछ विद्वानों का मत है कि वैशेषिक सूत्रों में ईश्वर के विषय का कोई उल्लेख नहीं मिलता । परमाणु और आत्मा को क्रिया अदृष्ट के द्वारा सम्पादित की जाती है । अतः मौलिक वैशेषिक दर्शन अनीश्वरवादी था । अथैली (Athalye) आदि विद्वान् इस मत का विरोध करते हैं । उनका कहना है कि वैशेषिक दर्शन कभी भी अनीश्वरवादी नहीं रहा । वैशेषिक सूत्रों का ईश्वर के विषय में मौन रहने का यही कारण है कि वैशेषिक दर्शन का मुख्य ध्येय आत्मा और सउकी विशेषताओं की प्ररूपणा करना रहा है । प्रोफेसर राधाकृष्णन ने भी इस विषय में अपनी पुस्तक Indian Philosophy, Vol II पृ. 225 पर विमर्श किया है ।
कलिकालसर्वज्ञ प्राचार्य श्री हेमचन्द्र महाराज ने श्रन्ययोगव्यवच्छेदिका में ईश्वर के जगत् कर्तृत्व के विषय में वैशेषिकों के मत में दूषरण प्रदर्शित करते हुए कहा हैकर्त्तास्ति कश्चिज्जगतः स चैकः
1
स सर्वग स स्ववशः स नित्यः । इमा: कुहेवाकविडम्बनाः स्युः, तेषां न येषामनुशासकस्त्वम् ॥