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श्रीमद् विजय सुशील सूरीश्वरजी द्वारा संस्कृत एवं हिन्दी भाषा में की गई रचना अत्यन्त सारगर्भित है। विषय को स्पष्ट करने की स्वाभाविक क्षमता, भाषा एवं भावाभिव्यक्ति पर समान नियन्त्रण, अनसुलझी उलझो बातों को सरल एवं सरस रीति से प्रस्तुत करने की अपूर्व क्षमता प्राचार्यश्री की स्वगत विशेषता है ।
मैंने 'विश्वकर्तृत्व-मीमांसा' एवं 'जगत्कर्तृत्व-मीमांसा' को प्राद्योपान्त देखकर यह निष्कर्ष निकाला है कि आचार्यश्री संक्षिप्त रूप में सारतत्त्व को प्रगट करने में सिद्धहस्त हैं। विवेचन शैली में भी कहीं-कहीं सूत्रात्मक शैली दृष्टिगोचर होती है। संस्कृत की सरलता के सन्दर्भ में भी प्रापश्री बद्धपरिकर परिलक्षित हुए हैं। प्राशा है कि प्रस्तुत रचनाद्वयी जिज्ञासुजनों का मार्गदर्शन करने में सफल सिद्ध होगी।
प्राचार्यश्री अपनी अन्य महनीय कृतियों के द्वारा भी संस्कृत, हिन्दी वाङ्मय को समृद्ध करते हुए निरामय एवं चिरायु हों-इसी मंगल मनीषा के साथ
स्थल : 10/430, नन्दनवन, जोषपुर-342008
विदुषां वशंवदः : शम्भुदयाल पाण्डेय व्याख्याता-संस्कृत