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सर्वज्ञत्व
वैशेषिकों के ईश्वर का सर्वज्ञत्व प्रत्यक्ष या परोक्ष किसी भी प्रमाण से सिद्ध नहीं है। प्रत्यक्ष प्रमाण से ईश्वर का सर्वज्ञत्व सिद्ध नहीं हो सकता, क्योंकि प्रत्यक्ष इन्द्रिय एवं मन के संयोग से उत्पन्न होता है। वह अतीन्द्रिय ज्ञान को नहीं जान सकता। परोक्ष ज्ञान से भी ईश्वर के सर्वज्ञत्व की सिद्धि सम्भव नहीं, क्योंकि परोक्ष ज्ञान अनुमान या शब्द से सर्वज्ञत्व को जानता है । अनुमान से ईश्वर का सर्वज्ञत्व ज्ञात नहीं हो सकता क्योंकि लिंगी और लिंग (साध्य और हेतु) दोनों के सम्बन्ध के स्मरण पूर्वक ही अनुमान होता है। जैसे-पर्वत अग्निमान है, निरवछिन्न धूम के कारण । ईश्वर प्रसङ्ग से ईश्वर के व्याप्तिग्रह भी नहीं हो सकेगा।
यदि आप कहें कि सर्वज्ञत्व के बिना जगद्-वैचित्र्य संस्थापित नहीं होगा अतः अर्थापत्ति प्रमाण से ईश्वरसिद्धि सम्भव है तो भी यह कथन ठीक नहीं है क्योंकि विश्वजगत् की विचित्रता और सर्वज्ञता के भी व्याप्ति का प्रभाव है। विश्व-जगत् की विचित्रता ईश्वर की सर्वज्ञता के बिना अन्य प्रकार से घटित नहीं हो सकती, ऐसी बात नहीं है। जंगम (त्रस) और स्थावर के भेद से संसार में
विश्वकत्तृत्व-मीमांसा-५१