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भी प्रात्मा से बाहर प्रमेय पदार्थों को जानता है । यह भी ठीक नहीं है क्योंकि किरणों का गुणत्व ही प्रसिद्ध है क्योंकि किरणें तेजस् पुद्गल रूप हैं, अतः वे द्रव्य हैं। किरणों का प्रकाशात्मक स्वरूप कभी किरणों से पृथक् नहीं रहता।
१४४४ ग्रन्थों के रचयिता पूज्य श्रीमद् हरिभद्र सूरीश्वरजी महाराज श्री ने 'धर्मसंग्रहिणी' नामक ग्रन्थ में कहा है कि-किरणे द्रव्य हैं, गुण नहीं हैं। किरणों का गुण प्रकाश है। यह प्रकाश रूप गुण द्रव्य को छोड़ कर अन्यत्र नहीं रहता। ठीक इसी प्रकार ज्ञान प्रात्मा का गुण है । वह आत्मा से पृथक् नहीं होता ।।१।।
जिस देश में ज्ञेय पदार्थ स्थित हैं, उस प्रदेश में ज्ञान जाकर ज्ञेय को नहीं जानता किन्तु प्रात्मा में रहते हुए दूर देश में स्थित ज्ञेय को जानता है, प्रात्मा के ज्ञान में अचिन्त्य शक्ति है ॥२॥
जिस प्रकार चुम्बक पत्थर की शक्ति चुम्बक में ही रहकर दूर रखे हुए लोहे को अपनी ओर खींचती है, ठीक इसी प्रकार ज्ञान शक्ति प्रात्मा में ही रहकर लोक के अन्त तक रहने वाले पदार्थों को विधिवत् जानती है, इसमें कोई विरोध नहीं है।
विश्वकर्तृत्व-मीमांसा-५०