SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परस्पर मतिभेद की दृष्टि से ईश्वर एकत्व की कल्पना, भोजनादि के व्यय से त्रस्त कृपण पुरुष के अपने प्रिय पुत्र, स्त्री आदि को छोड़कर वनवासी हो जाने की तरह हास्यास्पद है। सर्वगतत्व__ईश्वर सर्वगत भी सिद्ध नहीं होता, क्योंकि ईश्वर का सर्वगतत्व शरीर की अपेक्षा से है अथवा ज्ञान की अपेक्षा से ? प्रथम पक्ष में ईश्वर का अपना शरीर ही तीनों लोकों में व्याप्त हो जायेगा फिर दूसरे बनाने योग्य (निर्मेय) पदार्थों के लिए कोई स्थान ही नहीं रहेगा। यदि आप कहें कि ज्ञान की अपेक्षा ईश्वर को सर्वव्यापी मानें तो इसमें हमारे साध्य की सिद्धि है, क्योंकि हम (जैन) भी परमात्मा को निरतिशय ज्ञान की अपेक्षा से त्रिलोकव्यापी मानते हैं परन्तु ईश्वर को ज्ञान की अपेक्षा सर्वगत मानने से आपके सिद्धान्त पक्ष में विरोध पाता है। वेद में ईश्वर को शरीर की अपेक्षा से सर्वव्यापी कहा है। __ श्रुति में ईश्वर सर्वत्र नेत्रों वाला, मुंह वाला, हाथों वाला तथा पैरों वाला माना गया है। साथ ही वैशेषिक विश्वकर्तृत्व-मीमांसा-४७
SR No.022444
Book TitleVishva Kartutva Mimansa Evam Jagat Kartutva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Jinottamvijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1996
Total Pages116
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy