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में एकत्व इत्यादि विशेषण दिये गये हैं, वे सब नपुंसक के प्रति स्त्रीरूप लावण्य-चर्चा के समान ही हैं।
आइये, तथापि कुछ विचार-विमर्श करते हैं
तत्रैकत्व-एकत्व:
बहुत से ईश्वरों द्वारा विश्व-जगत्रूप एक कार्य विरचित होने की स्थिति में ईश्वरों में पारस्परिक वैमत्य होगा। यह कथन एकान्त सत्य नहीं है, क्योंकि सैकड़ों चींटियाँ एक ही बामी बनाती हैं, बहुत से कारीगर एक ही महल बनाते हैं, बहुत सी मधुमक्खियाँ एक ही शहद का छत्ता बनाती हैं, फिर भी वस्तुओं की एकरूपता में कोई विरोध नहीं आता।
यदि वादी कहे कि-बामी, प्रासाद आदि का कर्ता भी ईश्वर ही है तो इससे ईश्वर के प्रति आप लोगों की निरुपम श्रद्धा ही प्रकट होती है और इस तरह आपको कुम्भकार को घट और तन्तुकार को पट इत्यादि का कर्ता न मानकर ईश्वर को ही इनका भी कर्ता मानना चाहिए । यदि आप कहें कि प्रत्यक्ष दृष्ट को कैसे नकारा जाये तो चींटी और मधुमक्खी प्रादि को भी बामी, छत्ता प्रादि का कर्ता मानना पड़ेगा।
विश्वकर्तृत्व-मीमांसा-४६