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________________ इस प्रकार अनिश्चय की स्थिति बनी रहती है, तथा ईश्वर को अशरीर स्रष्टा मानने में दृष्टान्त दान्तिक विषम हो जाते हैं क्योंकि घटादिक कार्य शरीर सहित कर्त्ता के बनाये देखे जाते हैं तो फिर आकाश की तरह अशरीर ईश्वर किस प्रकार कार्य करने में समर्थ हो सकता है ! अर्थात् - 'जगत् अशरीर ईश्वर का बनाया हुआ है, कार्य होने से घट की तरह इस अनुमान में घट दृष्टान्त और जगत् दान्तिक में समता नहीं है, क्योंकि घट सशरीरी का बनाया हुआ है । जिस प्रकार अशरीरी आकाश कोई कार्य नहीं कर सकता, उसी तरह अशरीरी ईश्वर भी कार्य करने में असमर्थ है । इस कारण सशरीर और अशरीर दोनों पक्षों में कार्यत्व हेतु की सकर्तृत्व साध्य के साथ व्याप्ति सिद्ध नहीं होती । किञ्चेति आपके मत में कार्यत्व हेतु कालात्ययापदिष्ट भी है, क्योंकि जगत् रूप धर्मी ( साध्य ) के एकदेश इस काल में उत्पन्न वृक्ष, विद्युत्, मेघ किसी कर्त्ता के देखे जाते हैं, अतः यहाँ प्रत्यक्ष से बाधित हेतु का कथन किया गया है । बनाये हुए नहीं धर्मी के अनन्तर प्रतएव यह हेतु दोषपूर्ण है । अतएव विश्व जगत् ईश्वर के जगत्-कर्तृत्व साधन का कोई कर्ता नहीं है । विश्वकर्त्तृत्व-मीमांसा - ४५
SR No.022444
Book TitleVishva Kartutva Mimansa Evam Jagat Kartutva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Jinottamvijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1996
Total Pages116
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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