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के अभाव रूप जलाशय आदि विपक्ष में भी रहता है। अतः प्रमेयत्व हेतु अनैकान्तिक हेत्वाभास है। ___ इसी प्रकार यहाँ भी कार्यत्व हेतु पृथ्वी आदि पक्ष में, सपक्ष में तथा ईश्वर के शरीर द्वारा नहीं बनाये हुए घास, वृक्ष आदि विपक्ष में भी कार्यत्व हेतु चला गया। अतः यह हेतु साधारण अनेकान्तिक हेत्वाभास होने से दोषपूर्ण है। ___ यदि आप अदृश्य ईश्वर शरीर से विश्व-सृष्टि मानते हैं तो ईश्वर-शरीर की अदृश्यता में कारण ईश्वर का माहात्म्य है या हमारा दुर्भाग्य ! प्रथम पक्ष विश्वसनीय नहीं है, क्योंकि-ईश्वर के अदृश्य शरीर सिद्ध करने में कोई प्रमाण नहीं है तथा ईश्वर के माहात्म्य विशेष सिद्ध होने पर उसका अदृश्य शरीर सिद्ध हो और अदृश्य शरीर सिद्ध होने पर माहात्म्य विशेष सिद्ध हो, इस प्रकार इतरेतराश्रय (अन्योन्याश्रय) दोष भी आता है। यदि कहें कि हम लोगों के दुर्भाग्य से ईश्वर का शरीर दृष्टिगोचर नहीं होता तो यह भी ठीक नहीं अँचता क्योकि वन्ध्यापुत्र की तरह ईश्वर का अभाव होने से उसका शरीर दिखाई नहीं देता, अथवा जिस प्रकार हमारे दुर्भाग्यवश पिशाच आदि का शरीर दिखाई नहीं देता, वैसे ही ईश्वर का शरीर भी अदृश्य है ?
विश्वकर्तृत्व-मीमांसा-४४