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लोकों के समस्त पदार्थों की यथारीति उत्पत्ति सम्भव न होगी। जैसे कुम्भकार एक प्रदेश में रहकर नियत प्रदेश के घटादि पदार्थों को ही बना सकता है, वैसे ही ईश्वर भी नियत प्रदेश में रहकर अनियत प्रदेश के पदार्थों की रचना नहीं कर सकता। ___अथवा ईश्वर सब पदार्थों का जानने वाला (सर्वज्ञ) है, क्योंकि कहा है कि मत्यर्थ धातु ज्ञानार्थक भी होती है।' यदि ईश्वर को सर्वज्ञ न मानें तो यथायोग्य उपादान कारणों के, न जानने के कारण वह ईश्वर अनुरूप कार्यों की उत्पत्ति न कर सकेगा। ईश्वर स्वतन्त्र (स्ववश) है क्योंकि वह अपनी इच्छा से ही सम्पूर्ण प्राणियों को सुखदुःख का अनुभव कराने में समर्थ है। कहा भी है____ "ईश्वर से प्रेरित जीव स्वर्ग और नरक में जाता है । ईश्वर की सहायता के बिना कोई अपने सुख-दुःख उत्पन्न करने में स्वतन्त्र नहीं है।"
ईश्वर को पराधीन परतन्त्र स्वीकार करने पर परमुखापेक्षी होने से, मुख्य कर्तृत्व को बाधा पहुँचेगी, फलस्वरूप उसका ईश्वरत्व नष्ट हो जायेगा।
ईश्वर अविनाशी, अनुत्पन्न और स्थिर रूप नित्य है । ईश्वर को अनित्य मानने में एक ईश्वर दूसरे ईश्वर से
विश्वकर्तृत्व-मीमांसा-३८