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कोई इन्द्रिय ही नहीं है तो फिर उसे प्रत्यक्ष कैसे होगा और बिना प्रत्यक्ष के वह कोई अनुमान भी नहीं कर सकेगा। यदि यह कहें कि ईश्वर को माने बिना विश्व की रचना का यह वैचित्र्य कैसे विख्यात या सिद्ध होगा तो यह भी सही नहीं है। पापादन द्वारा यह सिद्धि तब संगत मानी जा सकती है जब अन्य कोई परिकल्पना सम्भव ही न हो। यहाँ अन्य सम्भावनाएँ भी हो सकती हैं। ____एक सर्वज्ञ ईश्वर के बिना भी एक नैतिक व्यवस्था अथवा कर्मसिद्धान्त के प्राधार पर सारी सृष्टि व्याख्यात की जा सकती है।
यदि आप एक ईश्वर मानते हैं तो ईश्वरों का एक समुदाय भी माना जा सकता है। यदि आप कहें कि बहुत से ईश्वर होने पर मतभेद और झगड़े हो जायेंगे तो यह उस कंजूस की कहानी-सी हो गई जो खर्च न करना चाहने के कारण अपने पुत्रों और पत्नी को छोड़कर वनजंगल में साधु बन गया। जब चींटियाँ और मक्खियाँ तक समन्वय के साथ सहयोग कर सकती हैं तो अधिक ईश्वर होने पर यह मानना कि उनमें मतभेद हो जायेगा, यह सिद्ध करता है कि आप द्वारा बताये गये ईश्वर के
विश्वकर्तृत्व-मीमांसा-३३